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यात्रा एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र की

Manthan
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यात्रा एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र की

दिनांक 07.01.2013 को सड़क मार्ग से राज्य (बिहार) के एक नक्सल प्रभावित जिले जहानाबाद का दौरा करने और नक्सल प्रभावित क्षेत्र (इस जिले) के लोगों से साक्षात्कार व संवाद के पश्चात एक बात जो स्पष्ट तौर पर उभर कर आयी कि विकास के लाख दावों के बावजूद प्रदेश के अनेक इलाके विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं। यहाँ तक कि कुछ नक्सली नेताओं ने , नाम नहीं उजागर करने की शर्त के साथ , ये बताया और स्वीकार किया कि विकास और बेहतर जिंदगी के माध्यम से ग्रामीण जनता पर नक्सलियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

इस इलाके में स्थापित एक सरकारी अधिकारी ने भी काफ़ी सकुचाहट के बाद कहा कि ” मैं स्वीकार करता हूं कि विकास की रोशनी प्रदेश के इन इलाकों में नहीं पहुंच पाई है और इन ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की योजनाओं का जायजा लेने शायद ही कोई सरकारी पदाधिकारी निकलता हो और योजनाओं की समीक्षा फ़ाईलों व दफ़्तरों में ही कर दी जाती है l”

एक नक्सली नेता से यह पूछे जाने पर कि ग्रामीण क्षेत्रों की जनता सरकार के बजाए उनकी (नक्सलियों) की ओर क्यों रुख करते हैं ?उन्होंने ने कहा कि “मैं मानता हूं कि यदि पंचायती राज संस्थाओं को अपने अधिकारों का पता रहे और वे सही दिशा में काम करें तो ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।”

उन्होंने (नक्सली नेता ने) कहा कि “इस समस्या से निपटने में जमीनी विकास कुछ हद तक मददगार हो सकता है। आजादी के बाद के सालों में इन (नक्सल प्रभावित ) क्षेत्रों को नजरअंदाज किया गया है।”
उन्होंने (नक्सली नेता ने) उल्टा मुझ से ही एक प्रश्न पूछ दिया “सड़क यात्रा से आपको जमीनी हालातों का पता चल गया होगा !! क्या आप और आपका शासन-तंत्र, आपकी सरकार ऐसा तंत्र , ऐसी व्यवस्था विकसित कर पाएँगे जिसकी मदद से राज्य मुख्यालय से कल्याणकारी योजनाओं पर निगरानी रखी जा सके और दबे-कुचले, पिछड़े ग्रामीणों के साथ संवाद स्थापित किया जा सके ?”

उन्होंने (नक्सली नेता ने) कहा, ” मैं सदैव ग्रामीणों के सम्पर्क में रहता हूँ और हालात का जायजा लेता रहता हूँ । मैं व्यवस्था परिवर्तन की राजनीति करने में यकीन रखता हूँ । राजनीतिज्ञों का वादा करना कोई नई बात नहीं है। वादा करना हमारे ऐजेण्डे में नहीं है । मैं अपने लोगों की सामाजिक, वैयक्तिक राजनीतिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा हूँ ।”

जहानाबाद यात्रा के दौरान हमने लगभग 30 कि.मी. किलो मीटर की यात्रा ऐसे इलाकों में की जो कि पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं l यात्रा के दौरान रास्ते में हमारे सम्पर्क – सूत्र के दलान पर हमारी मुलाकात मुन्ना नामक एक विकलाँग युवक से हुई । वे हम लोगों को उस रास्ते में देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि उस रास्ते में प्राय: कोई शहरी जाना पसंद नहीं करता है । शारीरिक अपँगता के बावजूद उस युवक के जज्बे से प्रभावित हुए बिना हम नहीं रह सके । उनकी तस्वीरों को कैमरे में कैद करने में हमने कोई विलंब नहीं किया । हमने जब बिसलेरी की बोतल और हल्दीराम की भुजिया उनकी ओर बढ़ाई और उनके कंघे पर हाथ रख कर मगही ( स्थानीय बोल-चाल की भाषा) में बात की तो मुन्ना खुश हो गए और उन्होंने अपने विचारों को हमारे साथ बाँटा l उन्होंने और तस्वीरें लेने का आग्रह भी किया ( इस आलेख के साथ उनकी तस्वीरें भी पोस्ट कर रहा हूँ) l इस ठिठुरती ठँढ़ में भी उन्होंने केवल एक हॉफ़ – कमीज पहन रखी थी l मैं ने जब उन से जब ये पूछा कि क्या आप को ठँढ़ नहीं लगती ? तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से जबाब दिया ” हम पेट की आग तापने वालों को ऐसी ठँढ़ की परवाह नहीं रहती ” l देश और प्रदेश की सम-सामयिक घटनाओं से भली-भाँति परिचित भी दिखे मुन्ना, मनरेगा की योजनाओं में गड़बड़ी से आक्रोशित l उनका कहना था कि “व्यवस्था परिवर्तन के लिए दिखावे के आमरण अनशनों और आन्दोलनों से कुछ नहीं होने वाला…कुर्बानी की जरूरत है ” l उनकी आत्मीयता और बेबाकी ने मुझे और मेरे सहयोगियों को आत्म-चिन्तन के लिए कुछ पलों के लिए जरूर बाध्य कर दिया । हमने उनके साथ वहाँ पर करीब आधे घंटे का वक्त बिताया और उनसे विदा लेकर आगे की ओर चल पड़े । इसके पहले उन्होंने हम लोगों को सत्तु की एक थैली दी और हमारी मंगलमय यात्रा की कामना भी की । संभवत: यह उनकी कामनाओं का ही असर था जो हमारी यात्रा उस नक्सल प्रभावित रास्ते में भी सुखद रही ।

नक्सली क्षेत्रों में बसों से यात्रा करने वाले यात्रियों के चेहरे पर खौफ दिखाई देने की बात भी सामने आई । दहशत का माहौल तो व्याप्त रहता ही है । इन इलाकों में अधिकांश जगहों पर सरकारी तंत्र का पहुंचना काफी मुश्किल है ।

कुछ लोगों से बातचीत के क्रम में ये भी ज्ञात हुआ कि नक्सलवाद की घटनाओं में कमी आई है और कमी में अर्ध-सैनिक बलों और ग्रामीण विकास योजनाओं का भी योगदान कुछ हद तक रहा है । लेकिन ज्यादातर लोगों ने आशंका जाहिर की कि ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार जैसी मूलभूत जरूरतों एंव समेकित कार्य योजनाओं के पूरा नहीं होने पर फिर से नक्सलवाद बढ सकता है । लोगों ने बताया कि अभी भी मनरेगा और इंदिरा आवास योजनाओं में पंचायती राज संस्थाओं और राज्य सरकार की ओर से बहुत कार्य किया जाना बाकी है ।

नक्सली विचारधारा को मानने वालों ने बात-चीत के क्रम में कहा कि ये अफ़सोस की बात है कि पंचायती राज संस्थानों में जीतकर आयी महिलाओं पर आज भी उनके पति हावी हैं और वे ही अपनी पत्नी के बदले मुखिया और सरपंच के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने ये भी बताया कि उन लोगों ने सरकारी बैठकों में महिला मुखिया और सरपंच की जगह उनके पतियों के भाग लेने पर पाबंदी लगा रखी है l

इस पूरी यात्रा के दौरान एक बात जो सामने उभर कर आयी कि नक्सलियों के समूल नाश के लिए सरकारी तौर पर योजनाओं को संचालित करने का दावा चाहे जितना किया जाय, परन्तु इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आती है । मतलब साफ है कि नक्सल क्षेत्रों में काम कम हो रहा है और सरकारी तौर पर ढिंढोरा अधिक पीटा जा रहा है। नक्सलियों के सफाए के लिए बनी योजनाओं पर कितना अमल हो रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इंट्रीग्रेटेड एक्शन प्लान के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गांवों के विकास के लिए बनी करोड़ों रुपये की योजनाओं का कहीं कोई अता पता नहीं दिखा ।

जहानाबाद जिले के नक्सल प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर लोग शहरी क्षेत्रों में बसने लगे हैं। पूर्व मे जेल-ब्रेक काँड और नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के बाद भी स्थिति यह है कि पिछले कुछ वर्षों में जहानाबाद शहर (जिला मुख्यालय) में जमीन की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है । शहर के पश्चिमी क्षेत्र में नक्सली प्रभाव ज्यादा होने के कारण इस दिशा में लोगों के बसने की कम संभावना है । दक्षिण, उत्तर और पूर्व दिशा में लोग जमीन खरीद कर कुकुरमुत्ते की तरह फैल रहे हैं। वहीं तेजी से बढ़ रहे जनसंख्या विस्तार भी मुख्य कारण हो सकता है । इसी वजह से यहां की जमीन की कीमतों में उछाल आयी है ।

तटस्थ/ निरपेक्ष लोगों से बात-चीत के क्रम में ये ज्ञात हुआ कि नक्सली आतंक फैलाने के अवसर अक्सर ढूंढते ही रहते हैं तथा यदा-कदा अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में जन सुनवाई का दरबार लगाकर पुलिस से संपर्क या पुलिस का मुखबिर होने का दोषी करार देकर किसी भी स्थानीय नागरिक की सरेआम गला रेतकर या गोली मारकर हत्या करने में कभी पीछे नहीं रहते । बारूदी सुरंगों में विस्फोट द्वारा हिंसा और दहशत फैलाकर सरकार पर दबाव बनाने में नक्सली अब तक सफल ही रहे हैं । बमों और बंदूकों के इस्तेमाल की सरकार की अपनी सीमाएं हैं ।

जिला मुख्यालय में बात-चीत के क्रम में प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि ” नक्सली उन्मूलन के नाम पर कोई भी लोकतांत्रिक सरकार नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच फंसे नागरिकों को सीधे मौत के मुंह में नहीं धकेल सकती और इसी का फायदा नक्सली उठा रहे हैं । ” उनकी ये बात मुझे कुछ हद तक व्यक्तिगत तौर पर ठीक लगी l एक स्थानीय विधायक ने कहा कि ” विकास की गति रुक जाने के कारण बढ़ रही नक्सली गतिविधियों का तर्क जाल बुनकर नक्सली हिंसा को सही ठहराने वाले लोगों ने जान-बूझकर इस ओर से आँखें बंदकर रखी हैं कि नक्सलियों ने समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य से वंचित रखकर अंधकारमय जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया है। ग्रामीण दैनिक जरूरतों को पूरा करने वाले हाट-बाजारों को बंद कर दिया है और दूरस्थ ग्रामों को शहरों से जोड़ने वाली विकास की प्रतीक सड़कों को नक्सलियों ने ही खोदकर उनमें बारूद भर दिया है ।” नेताजी का कथन नेताजी के शासन-तंत्र के अँग होने के मद्देनजर मुझे काफ़ी नपा-तुला लगा l

इस पूरी यात्रा के सम्पन्न होने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि नक्सली आतंक से त्रस्त स्थानीय जनता भी अब समझने लगी है कि कमजोर पड़ते शासन-तंत्र का फायदा उठाकर नक्सलवाद उग्र होता जा रहा है और स्थानीय जनता के स्वत:स्फूर्त सहयोग , समग्र विकास और उत्थान से ही नक्सलवाद पर अंकुश लगाने में सफलता मिलेगी ।

आलोक कुमार , चित्रगुप्त नगर , कँकड़बाग , पटना.
सम्पर्क :- 8002222400 ; e-mail :- alokkumar.shivaventures@gmail.com

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