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राहुल ” बाबा ” के सामने “साष्टाँग ” कांग्रेस !!
घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस नीत केंद्र सरकार की मुखालफत देश भर में होने से अब कांग्रेसी बैकफुट पर आ गए हैं। कांग्रेस के नेता एक के बाद एक प्रयोगों के बाद अब राहुल की शरण में जाने पर मजबूर हो गए हैं। राहुल गांधी को पहले प्रधान-मंत्री फ़िर केंद्र सरकार में मंत्री बनाने पर आमदा कांग्रेसी अब संगठन में उन्हें नंबर दो की भूमिका देने की कोशिश में लग गए हैं ।
चारों ओर से निराश और जनाधार खो चुकी कांग्रेस के पास अब राहुल या प्रियंका का ही सहारा बचा है। राजनीतिक हलकों में इस बात की कानाफ़ूसी जोरों पर है कि इस समय कांग्रेस के आला नेता सोनिया गांधी पर भी यकीन नहीं कर रहे हैं। अधिकतर कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि सोनिया का जादू अब चुक गया है ।
उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने इस अटकलबाजी के बीच कि दिवाली से पहले पार्टी में फेरबदल होगा, पिछले गुरुवार को कहा कि महासचिव राहुल गांधी पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के बाद पार्टी में नंबर दो पहले से हैं। ये सब जानते हैं , यह कहने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी में फेरबदल की काफी चर्चा है, यह तभी होगा जब कांग्रेस प्रमुख इस बारे में फैसला लेंगी । अभी कोई समय या तारीख तय नहीं हुई है । गौरतलब है कि हालिया कैबिनेट के फेरबदल में राहुल गांधी के मनमोहन सिंह सरकार में शामिल नहीं होने के बाद से कयास लगाया जा रहा है कि उन्हें पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी । राजनीतिक विश्लेषकों का पूर्वानुमान है कि राहुल गांधी को पार्टी उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है । इस में ना तो कुछ नया है और ना ही बैसाखियों के सहारे चल रही कांग्रेस पार्टी और पार्टी की अगुवाई में चलनेवाली सरकार के लिए कुछ नया होने वाला है l
ये सर्वविदित है कि देश के सबसे पुराने राजनीतिक संगठन में बिना रानी और युवराज की अनुमति के कोई साँस भी नहीं लेता है l इनके नेतृत्व और मार्ग-दर्शन में ये संगठन अपने संक्रमण काल से गुजर रहा है l राहुल गाँधी ने जब-जब और जहाँ-जहाँ कमान सँभाली वहाँ-वहाँ कांग्रेस का क्या हश्र हुआ ये आप -हम सब भली-भाँति जानते हैं l
अजब संयोग है , सच कहा जाए तो ” राजनैतिक दिवालियापन ” का परिचायक है कि सवा सौ साल पुरानी और इस देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस आजादी के उपरांत साढ़े छः दशकों में भी नेहरू गांधी परिवार के अलावा कोई नेता पैदा ही नहीं कर पाई है । सोनिया गाँधी के बागडोर सँभालने के बाद के दौर के विश्लेषण से ऐसा प्रतीत कि सोनिया और उनके सलाहकारों ने एक सोची – समझी रणनीति के तहत मध्य-भारत या दूसरे शब्दों में कहूँ तो हिन्दी भाषी राज्यों में काँग्रेस के संगठन को जान-बूझ कर कमजोर किया l शायद उन्हें अँदेशा रहा होगा कि उनके नेतृत्व को चुनौती इन्हीं राज्यों से मिल सकती है l सोनिया के बाद राहुल को जवाबदारी सौंपने की चाहत से साफ हो रहा है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता अब भी वंशवाद से उबर नहीं पाए हैं और ना उबरने के इच्छुक हैं ।
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