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बदलाव जीवन का हिस्सा है, जी हाँ परिवर्तन होता रहता है, प्राकृतिक, कृत्रिम, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यावहारिक और भी न जाने कौन-कौन से परिवर्तन आते रहते हैं जीवन में, लेकिन हम उन्हीं परिवर्तनों को सहर्ष स्वीकार करते हैं जिसमें हमे सीधा-सीधा फायदा दिखता है। हम सबके जीवन में भी बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ, जब राजीव गांधी जी भारत में कम्प्यूटर क्रांति लेकर आए। इस कम्प्यूटर क्रांति से बहुत बड़ा बदलाव हुआ लेकिन वह बदलाव बाबूओं ने सहर्ष स्वीकार नहीं किया। आज उन बाबुओं के बेटे पूछते हैं कि पापा आप टाइपराइटर से कैसे काम कर लेते थे? लेकिन पापा का साहस नहीं होता कि वह बेटे से कह दे कि “मेरी चली होती तो बेटा तुम भी आज टाइपराइटर ही पीट रहे होते”।
उस समय कुछ नये लड़कों को प्रशिक्षित किया गया जो कम्प्यूटर चलाते थे, बाकी बचे बाबू कम्प्यूटर के कारण होने वाली दिक्कतों को गिनाते थे, जैसे आज के व्यापारी जी एस टी को लेकर दिक्कतें गिना रहे हैं। आॅफिस में परेशानी उस समय भी हुई थी जहां 5 टाइपराइटर पर 5 क्लर्क काम करते थे, वहाँ एक क्लर्क द्वारा एक कम्प्यूटर पर काम होता था। दूरगामी परिणामों को नजरअंदाज कर काफी विरोध हुआ और जहाँ तक बात रही राजनीतिक दलों की तो इनका जन्मजात कर्तव्य ही है सरकार के हर फैसले को गलत बताना। आधार को भी गलत बताया गया, लेकिन आज भ्रष्टाचार दूर करने के लिए एक बड़ा हथियार साबित हो रहा है।
नरसिम्हा राव जी और मनमोहन जी ने भी आर्थिक सुधार के लिए काफी काम किया। काम विगत की सभी सरकारों ने किया लेकिन हमें सोचने के लिए मजबूर केवल दो बातों ने किया या यूं कहूँ कि हमारी सोच को दो चीजों ने बदला पहला तो मुफ्त में सरकारी सहायता जैसे बिजली, पानी बिल माफी, किसानों का कर्ज माफी। इससे हमारी सोच में बदलाव आया कि काम वाली नहीं फ्री वाली सरकार चुनो और पैसे की कमी हो या न हो लेकिन राज्य में चुनाव से छ: महीने पहले सरकारी कर्ज जरूर लें, क्योंकि सत्ता में वही आएगा जो कर्ज माफ करेगा।
प्रधानमंत्री मोदी जी कहते थे कि मुफ्त में नहीं देंगे, लेकिन गौरव से जीने के लिए साधन उपलब्ध कराएंगे। मगर न जाने कौन सी मजबूरी थी कि इन्होंने भी कर्ज माफी का धब्बा अपने माथे पर लगा लिया। कुछ भी किया हो मोदी ने, लेकिन दूसरी चीज मोदी ने ही की जिसने सोच बदलने पर मजबूर कर दिया, लेकिन हमारी नहीं, जी हाँ हम परिपक्व हो चुके हैं हमारी सोच मोदीजी बदलने का प्रयास करेंगे, तो हम अगले चुनाव में उन्हें ही बदल देंगे।
स्वच्छ भारत अभियान में फोटो खिंचाने वाले तो केवल फोटो सेशन के लिए अवतरित होते हैं, क्योंकि सोच नहीं बदली और बदली होती तो उनके क्षेत्रों में सफाई दिखाई जाती न कि सफाई के आडम्बर वाली फोटो। इसका अर्थ ये नहीं कि मोदीजी ने किसी की सोच नहीं बदली, मोदीजी ने मेरी सोच नहीं, मेरे बच्चों की सोच बदल दी और अब मैं कहीं भी कचरा फेंकू तो दो-दो बच्चे मोदीजी बनकर मुझे टोकने लगते हैं। सोच बच्चों की बदली और उन्होंने मुझे बदल दिया।
बच्चों ने मेरी सोच बदल दी लेकिन दुकानदारों की सोच कौन बदलेगा? अभी कल ही तो मैं एक दुकान पर गया था। दुकानदार बोला सर मोदी ने पूरा बिजनेस खराब कर दिया, धंधा चौपट हो गया है। मैंने कहा क्या हो गया? तुम कल भी बिना बिल के सामान बेच रहे थे और आज भी बिना बिल के सामान बेच रहे हो, फिर आफत किस बात की? उसने कहा कि सर पुराना सामान है वही बेच रहा हूं, नया सामान कोई भी नहीं है।
आगे दलील देने लगा कि पहले 800 रुपये का पंखा खरीदकर आप को 1000 रुपये में बेचता हूं, लेकिन 28% जीएसटी के बाद यह पंखा 1280 रुपये में बेचूँगा तो आप की जेब से गये 280 रुपये। मैंने पूछा पहले क्या पंखे पर कोई टैक्स नहीं था? उसने कहा 18% टैक्स था, लेकिन न तो मैं देता था और न ही आप लोगों से लेता था। मैंने कहा अर्थात टैक्स चोरी करते थे, उसने कहा जी हां।
मैंने कहा पहली बात चोरी करना अपराध था, दूसरी बात यदि तुम पिछले 30 सालों से 10% टैक्स दे रहे होते तो आज टैक्स 28% नहीं 5% होता, लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि चोरी हम करें और दोष किसी और का। सफाई के लिए सोच बदलने का काम तो बच्चों ने बखूबी किया और इनके इस सहयोग के लिए मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूं, लेकिन उनका एक बार फिर से सहयोग मांगता हूं कि अपने मां-बाप से टैक्स चोरी न करने की पुरजोर अपील करें। बच्चों तुम ही हो जो विकासशील भारत को विकसित भारत बनाओगे।
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