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अपने घर को बचाने चले है ( कविता )

उलझन ! मेरे दिल की ....
उलझन ! मेरे दिल की ....
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रूठे हुओ को मनाने चले है ,
अपने घर को बचाने चले है !
गलती हमारी हो या उनकी ,
सबको आज भूलाने चले है ,
अपने घर को बचाने चले है !
साथ रहे बचपन में ,
साथ बड़े जवानी में ,
यादो को फिर हम ,
जगाने चले है !
अपने घर को बचाने चले है
जो कुछ कमाते है
सब यही रह जाता है
यादो का मंजर
आँखों में रह जाता है !
प्यार को दिल में
सजाने चले है !!
अपने घर को बचाने चले है …

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