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शुद्ध धर्म में जब गलत नियत मिल जाती है तो धर्म का प्रयोग धन ,सत्ता, बल और सारे धर्मविरुद्ध कामो के लिए के लिए होता आया है !
कोन भगवान है कोन नही ! किसकी पूजा करो ! किसकी नही ! जो महाराज खुद धारण करके शंकराचार्य की उपाधि पर है , पर हर हर से परेशानी तर्क कुछ भी नही !
…….धर्मपर लोग सही राह ,सहायता, मदद्त ,दिल की शांति ,विचार ,प्रगति और इमानदारी से चलते है |
फिर उसके लिए उपासना किसी भी नाम की , या शक्ति की इमानदारी से सद्द कर्म करते हुए करी जाये तब फायदा सब को मिलता है …..
….अब साईं बाबा का विरोध क्यों ?
कभी उन्होंने नही कहा अपने बारे में ! सादा जीवन रहा उनका !
उनके नाम का प्रयोग धन बल कमाने बाले लोगो ने अपना फायदा लेने को किया है सच है पर ये क्या पहली बार हुआ है या आखिरी बार ?
….. पर सवाल यह है की बुराई क्या है ? उनकी पूजन में ?
खुद ये महाराज भी लाल बत्ती में , और आलिशान बगलों में धर्म उपदेश दे रहे है …समाज को दिया क्या है इन्होने ? राजनीती के अलावा ?
………..और हा ! हिन्दू धर्म में भगवान देवी – देवता ,काल और समाज की समस्या और जरूरत के आधार पर ही गड़े जाते है जो उसी रूप में प्रसिद्ध होते है .कभी राम आदर्श थे !तो कभी कृषण सर्व राज-नीती कला निपुण ! कभी देवी काली – गौरी माता जब स्त्रियों का मनोबल उच्च करना था ! गौतम बुद्ध जब जातिबाद के विरुद्ध समाज की आवाज बने उनको भी विष्णु का अवतारमाना गया है …..संतोष के लिए संतोषी माता भले ही पिक्चर से प्रचार मिला हो , सेवा- भाव -भक्ति- बल के मानक हनुमान भी सर्वमान्य सर्वकालीन है और रहेंगे |
.आज साईं बाबा है ……जिनसे हिन्दू धर्म की हानि नही लाभ ही हो रहा है !मंदिर बन रहे है जिनमे सब भगवान होते है ! लगर चल रहे है ! सबसे बड़ा फायेदा धर्म का मनोविज्ञानिक फायदा होता है आत्म विस्वास बढता है ! …….
और कुछ लाख लोगो का घर चल रहा है !
विरोधी विचारो का स्वागत है ….
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