Menu
blogid : 12147 postid : 742704

तुम !

उलझन ! मेरे दिल की ....
उलझन ! मेरे दिल की ....
  • 93 Posts
  • 283 Comments

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं

कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं

बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी

एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं

रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने

आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने

वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स

उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply