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थमती संसद , जनता का अपमान- रीडर ब्लॉग

उलझन ! मेरे दिल की ....
उलझन ! मेरे दिल की ....
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, जब किसी चीज को हम प्रत्यक्ष करके देखते है तब उसको आत्मसात आसानी से कर सकते है नही तो संशय बना रहता है
`इस देश का ये दुभाग्य ही है की सम्पूर्ण राजनीति सत्ता उन्नमुख हो गयी है , केवल विरोध करने के लिए ही विरोध किए जाते है , जनता या देश हित के निर्णय और नीतिया भी राजनीति के शिकार हो रहे है जो भी विपक्ष मे होता है उसका काम अब सरकार के हर काम और निर्णय का विरोध करना भर रह गया है , फिर सत्ता मिलते ही सुर दोनों पक्षो के बदल जाते है | जनता ने अपनी पसंद से सरकार चुन ली होती है पर जनमत के विरुद्ध भी विपक्ष जनमत का अनादर करना अपना हक़ मानता है ! इस कारण देश के विकास के सारे मार्ग दुर्गम हो गए है ….इस देश का ये दुभाग्य ही है की सम्पूर्ण राजनीति सत्ता उन्नमुख हो गयी है
, केवल विरोध करने के लिए ही विरोध किए जाते है ,
जनता या देश हित के निर्णय और नीतिया भी राजनीति के शिकार हो रहे है|
जो भी विपक्ष मे होता है उसका काम अब सरकार के हर काम और निर्णय का
विरोध करना भर रह गया है |,
फिर सत्ता मिलते ही सुर दोनों पक्षो के बदल जाते है | जनता ने अपनी पसंद
से सरकार चुन ली होती है पर जनमत के विरुद्ध भी विपक्ष जनमत का अनादर
करना अपना हक़ मानता है ! इस कारण देश के विकास के सारे मार्ग दुर्गम हो
गए है ….जनता के धन से चलने बाली संसद को रोक कर धन बर्बादी का हक अति
अल्प बहुमत के विपक्ष को नही है |
यह जनमत का अपमान है ! परन्तु हर काल में ये होता आया है ! जो नही होना चाहिए !
अगर विरोध करना है तो संसद के बाहर जनमत को साथ लेकर करे ,महात्मा जी के
अहिंसा के सिधान्त अभी जनमानस में है
, अगर जनता को सही लगा तो आपका साथ जरुर देंगी ! जेसे अन्ना जी का साथ
दिया था ! उनकी एक आवाज़ ने दिल्ली जैसे सहर को जगा दिया था !
पर सरकार को जनमत काम करने के लिए मिला है |अगर विरोध है तो जनमत साथ लीजिये !
उसको काम करने दो |”सरकार को काम नही करने देने का” बहाना हम नही दे सकते ,
अब हमे अपने हक मिलने जरूरी है !जनता की मेहनत की कमाई को अपनी राजनीती
के लिए पानी की तरह न बर्वाद करे !
संसद को न चलने देने बाले सभी सदस्य मुफ्त जेसी सरकारी संसद केन्टीन में
खाना तो कभी नही भूलते ,तो किस तरह किस मुह से संसद का काम रोकते है ?
क्या वो बिना काम के यात्रा और अन्य सभी भत्ते नही लेंगे ? किसी अन्य
नौकरी या काम में ये संभव है ?
जनता भले भूखे रहे माननीय के पेट कभी कम नही होंगे !
क्या कभी संसद में सभी सदस्य एक मत से सभी प्राप्त सब्सिडी त्यागने की
घोषणा दिल से करेंगे ? जनता को क्या सन्देश दिया जाता है ?
आप अपने वेतन आप खुद तय करते हो किस तरह की बेशर्मी है ये ? ,हमे पेंसन
नही है पर आपको क्यों मिलती है ? और कितना काम करने का कितना लाभ मिलता
है ?
हर किसी के साथ गाड़ियों के काफिले बे जरूरी लोग क्यों ?…..कोई भी
मंत्री जनता से उपर नही है , अगर उनके किसी काम से जनता को परेशानी होती
है !तो सार्वजानिक रूप से माफ़ी मागने में शर्म न आये ,
याद रहे उन्होंने कहा है की वो प्रधान सेवक बन कर काम करने आये है ! उनसे
बड़े तो आप लोग नही हो गये हो ,,,,,,,,, शर्म हमे भी आती है कुछ लोगो के
काम पर ….
अगर सरकार के विरोध में विपक्ष राज बब्बर साहब की १० रुपे बाली थाली
खाते तो कुछ बात थी !जब किसी चीज को हम प्रत्यक्ष करके देखते है तब उसको
आत्मसात आसानी से कर सकते है नही तो संशय बना रहता है
`इस देश का ये दुभाग्य ही है की सम्पूर्ण राजनीति सत्ता उन्नमुख हो गयी
है , केवल विरोध करने के लिए ही विरोध किए जाते है , जनता या देश हित के
निर्णय और नीतिया भी राजनीति के शिकार हो रहे है जो भी विपक्ष मे होता है
उसका काम अब सरकार के हर काम और निर्णय का विरोध करना भर रह गया है , फिर
सत्ता मिलते ही सुर दोनों पक्षो के बदल जाते है | जनता ने अपनी पसंद से
सरकार चुन ली होती है पर जनमत के विरुद्ध भी विपक्ष जनमत का अनादर करना
अपना हक़ मानता है ! इस कारण देश के विकास के सारे मार्ग दुर्गम हो गए है
….

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