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और…… अब संसद मे भी , राष्ट्र गीत का अपमान !

उलझन ! मेरे दिल की ....
उलझन ! मेरे दिल की ....
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सिलसिला रुक ही नही रहा है इस देश मे चीर हरण का , ससंद मे ही माननिये सदस्य देश का , सविधान का भारत के हर नागरिक का अपमान कर देते है और लोकतंत्र के नाम पर चुने गए देश के दुसमन हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर मे हमें ही आंखे दिखा रहे है सरकार और धर्म निपेक्षता का नकाब पहेने सता लोलुप नेता और सारे
के सारे दल अब भी आंखे मुधे पड़े है |
|बसपा से संभल के ससंद सदस्य शफीकुर्रहमान बर्क ने खुले – आम भारत की ससंद को चुनोती दे दी है | बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क द्वारा सदन में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के अपमान का मामला सामने आने के बाद एक भाजपा नेता ने इसकी निंदा करते हुए इसे ‘तालिबानी आचरण’ करार दिया। उन्होंने कहा कि जो लोग वंदे मातरम से नफरत करते हैं, उन्हें देश में रहने का हक नहीं है। । बुधवार ८ मई को लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले सदन में ‘वंदे मातरम्’ की धुन बजने के दौरान संभल से बीएसपी सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के उठकर बाहर चले जाने पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने कड़ी नाराजगी जाहिर की और उन्हें भविष्य में ऐसा नहीं करने की सख्त चेतावनी दी।
स्पीकर ने कहा, ‘एक माननीय सांसद वंदे मातरम् की धुन बजने के दौरान सदन से बाहर चले गए। मैंने इसका गंभीर संज्ञान लिया है। मैं जानना चाहूंगी कि ऐसा क्यों किया गया। ऐसा आगे कभी भी नहीं होना चाहिए।’नियमानुसार लोकसभा अध्यक्ष इस मसले पर बर्क को नोटिस जारी कर सकती हैं।लेकिन क्या सरकार उन्हें ऐसा करने देंगी ? कभी नही सत्ता का लालच देश को गर्त मे डाल रहा है गठ बंधन की मज़बूरी , एस ग़द्दार को बचा ले जाएँगी | इस मुद्दे पर बीएसपी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। क्युकी सबको मुस्लिम वोट चहिये |लेकिन बाकि दलों का आचरण भी कहा निष्पक्ष रहा है ?
भाजपा के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां कहा, ‘‘संसद का हर सत्र राष्ट्रीय गान से शुरू होता है और उसका समापन राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के साथ होता है। यह स्वतंत्रता के बाद से बनी आ रही परंपरा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय गीत का अपमान किया गया।’’ बर्क के इस आचरण पर कल लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने उनका नाम लिए बिना बसपा सदस्य की आलोचना की थी।
नकवी ने कहा कि जो लोग संविधान निर्माता बाबा साहेब आम्बेडकर के नाम और विचारधारा की राजनीति करते हैं, उनकी ओर से राष्ट्रीय गीत का अपमान किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। बस्तविकता तो ये है की महापुरुष अब मात्र वोट लेने के लिए ही याद किये जाते है |उनकी मूर्ति दिल मे नही सडको और पार्को मे लगती है उनका यही तो अब उपयोग बचा है नही तो अब स्कूलों
के पाठ्यकर्म से हमारे – पूर्वज नामक पुस्तक रहस्मय तरीके से भी गायब हो गयी है |जिसमे हिन्दू काल से लेकर अभी तक के महा पुरुषो के गाथा होती थी
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘राष्ट्रीय गीत का बहिष्कार करके उन्होंने संविधान का अपमान किया है। जो लोग वंदे मातरम से नफरत करते हैं, उन्हें न तो संसद का हिस्सा बनने का अधिकार है और न ही इस देश में रहने का।’’
“कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों …….. आज इस गीत के रचयता कैफ़ी आज़मी की पुण्य तिथि है !! श्रधांजलि !! इस गीत को गाने वाले गायक थे मोहम्मद रफ़ी साहब !! बनाने और गाने वाले दोनों मुस्लिम और देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत दोनों को सलाम !!करता हु |वन्देमातरम ना बोलने वालो को इन्हें याद करके डूब मरना चाहिए !!वंदे मातरम का विरोध कुछ मुसलमान इस लिये करते है क्यों के इस मे भारत को एक भगवान माँ का दर्जा दिया गया है और इस मे कहा गया है के ए माँ हम तेरी पूजा करते है.|क्या माता की इज्ज़त करना किसी धर्म मे मना है
इस मे कोई शक नही के इस्लाम की सबसे प्रधान विशेषता उसका विशुद्ध एकेश्वरवाद हैं। अभी तक इस्लाम के एकेश्वरवाद में न किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ और न विकार उत्पन्न हुआ। इसकी नींव इतनी सुदृढ़ है। कि इसमें मिश्रण का प्रवेश असंभव हैं।लेकिन क्या किसी मुस्लिम
देश मे कोई राष्ट्रीय गीत या गान नही होता ? खुद पाकिस्तान मे ‘ कौमी तराना ” राष्ट्रीय गीत है जिसकी अंतिम पक्तिय है साया – इ- हुद्दा -इ- जू – एल -जलाल ( sāyā-ē-ḫudā-ē-zu-l-jalāल ) मतलब खुदा
का साया ,शानदार और पवित्र , और मक्का मदीना के भूमि सऊदी अरब मे भी देश की तुलना खुदा से करी गयी है |
और बंगलादेश मे “आमोर सोनार बंगला “तो पूरा गीत ही माँ के लिए है | जिसे नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ टगोर ने १९०५ मे रचा था

इसका कारण इस्लाम का यह आधारभूत कलीमा जिसका सहारा लेकर कट्टरपंथी अपनी रोटिय सेक रहे है वो ये है -’’मैं स्वीकार करता हू कि र्इश्वर के अतिरिक्त कोर्इ पूज्य और उपास्य नही और मुहम्मद र्इश्वर के दास और उसके दूत हैं।लेकिन ये कुछ लोग अपने ही धर्म की मूलभूत सिक्षा से भटक गए है और अब तो इस्लाम मे अब भी कब्र परस्ती हो रही है और तेजी से बढ रही है जैसे अजमेर की दरगाह,देल्ही का निज़ामुद्दीन,फ़तेहपुर का सालीम चिश्ती की मजार आदि जहा लाखो लोग जाते है.इसे भी हम मुस्लिमो की बुतपरस्ती कह सकते है।क्या विर्क शाब ने सच्चे मुस्लिम की तरह घर मे टीवी नही है या कभी कोई फोटो नही खिचवाई तो चुनाव का नामांकन कैसे किया ? जनता की सेवा करने के बदले कुछ भी लाभ नही लेते क्या ? अरे शहाब
ये तो न करो की मीठी मीठी गप गप , कडवी कडवी थु थु
वोटो की राजनीती मे पडकर क्यों अपना और कोम का नाम बदनाम करवाते हो . सलमान रुश्दी का सर कट कर लाने वाले को एक करोर रुपे का इनाम
देने का नारा देकर खबरों मे आने वाले युसूफ कुरेशी ( मेरठ ) आज कहा है ? सच तो ये है की आज भी आम मुस्लिम को पहेली जरूरत है सिक्षा और रोजगार जिससे उनका पिछड़ा पन दूर हो सकता है | और वो शांति और सम्मान से एस देश मे जीना चहता है |और कुछ लोगो की एस प्रकार की हरकत से ही भारत मे उनको शक से देखा जाने लगा है | और अलगाव की समस्या बड़ी है वीर अब्दुल हामिद ने भारत माता की खातिर ही अपनी जान दाव पर लगा दी थी और उनका नाम भारत के इतिहास मे दर्ज है |लाखो मुस्लिमो ने सहादत दी है | अगर किसी दिन आपने एन मूल समस्या मूलक मुद्दों के लिए संसद के बहार भूक हड़ताल करी होती तो आप खुदा के साच्चे बन्दे सिद्ध होते | आपकी इज्ज़त और वोट सच मे बड जाते |कुछ तो एस कर जाओ जो एस देश के कहलायो |
अगर सच्ची जनसेवा बाली राजनीती करी जाये तो भी आप फायेदे मे रहोंगे ……….. बन्दे – मातरम …..

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