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नमस्कार,
मैं सनोखर हूँ। अपने क्षेत्र में अध्यात्म का केंद्र हूँ, और ये आध्यात्म मुझमें आज से नहीं अपितु सैकड़ों वर्ष पूर्व से नीहित रहा है। मेरे गर्भ से बुद्ध कालीन मूर्तियाँ अभी भी यदा कदा निकल आती हैं , जिन्हें कभी शिव मंदिर में रखा गया था, मंदिर का शिवलिंग भी मानव निर्मित नही बल्कि सदियों पुरानी सनातन सभयता का प्रतीक है, जो मेरे अध्यात्म संबंधी कथन की पुष्टि भी करता है।
मैं सनोखर हूँ……..
मैं ज्ञान का केंद्र रहा हूँ। आजादी के पूर्व से ही मुझमें अनेक विद्वान का प्रवास रहता था तभी तो आजादी मिलते ही मैं अपने क्षेत्र में शिक्षा का केंद्र बना, राष्ट्रीय उच्च विद्यालय की स्थापना हुई। नामकरण में प्रयुक्त “राष्ट्रीय”शब्द मेरे राष्ट्र के प्रति प्रेम को जाहिर करता है। तब से लेकर आज तक मैं योग्य शिक्षकों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता आ रहा हूँ।
मैं सनोखर हूँ……….
मैं छोटा सा ही सही लेकिन इस क्षेत्र के अर्थ का केंद्र रहा हूँ। दैनिक उपभोग की सारी वस्तुएं , सप्ताह में दो बार विशेष बाजार (हटिया) के अलावे विशेष प्रकार की वस्तुओं का क्षेत्र में एकमात्र भरोसेमंद बाजार रहा हूँ।
मैं सनोखर हूँ……….
मैं समरसता का केंद्र रहा हूँ। मुझमें हर धर्म, समुदाय और जातियां समाहित हैं। ये समरसता आपको आस पास के अन्य किसी भी ग्राम से बेहतर मुझमें मिलेगी। राज्य के किसी भी कोने से या फिर राज्य के बाहर से जितने लोग आए मैने सबको सम्मोहित किया , वो मुझमें समाते चले गए। भोजपुरी, अंगिका, मगही, उर्दू और अन्य भाषा यहाँ घुल मिल गयी है। समरसता का यह रूप मुझे अद्वितीय बनाता है।
मैं सनोखर हूँ……..
मैं क्षेत्र का प्रसाशनिक केंद्र भी हूँ, यातयात के लिए सरल मार्ग हूँ।
मैंने क्षेत्र को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक , आध्यात्मिक ढांचा प्रदान किया हुआ है, बदले में इस क्षेत्र और क्षेत्र के निवासियों ने भी मुझे अगाध स्नेह दिया।
मैं सम्पन्न था , मेरे स्वरूप को देखते हुए मुझे ग्राम , पंचायत से ऊपर उठकर प्रखंड के दर्जा भी दिया गया, घोषणाएं हुईं, मिठाइयाँ बँटी, उत्सव का माहौल बना।
फिर घोषणाओं को जमीं पर उतारने की बारी आयी, कुछ दिनों का आश्वाशन मिला, ढेर सारे वादे किए गए, उन वादों की आँच में मुझे जलाया गया , प्राप्त अग्नि में चुनावी रोटियाँ सेंकी गयी। मुझे जलाकर , सेंककर कई सामान्य लोग विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री तक बने, आज उनका बड़ा रुतवा है, धाक है……. या फिर कहें कि उनमें घमंड भी आ गया है, उन सभी ने मिलकर मुझे किनारे कर दिया है।
मैं जख्मी हो चुका हूँ, जल रहा हूँ मैं, छल हुआ है मेरे साथ………..
सदियों से मैंने आपको ज्ञान दिया, धर्म दिया, समरसता दी, और भी बहुत कुछ………… और भी बहुत कुछ देने की चाहत रखता हूँ लेकिन जैसा कि मैंने बताया कि मैं जख्मी हूँ , असहाय हूँ ………..कभी किसी से कुछ नहीं मांगा……. गरीबों को धन देने की कोशिश की, बेरोजगारों को रोजगार, विद्यार्थियों को शिक्षा दिया …. बेचैन लोगों को अध्यात्म की शांति……। किसी से कुछ मांगना मेरे स्वाभिमान के खिलाफ है . लेकिन आज आप सभी से मैं अपने दोनों हाथ पसारकर मांगने को विवश हूँ…….. आप लोग कृप्या मेरा सम्मान मुझे लौटा दें। मेरी मदद करें ताकि मैं आपको रोजगार के नए अवसर दे सकूँ, आपके जीवन स्तर को ऊँचा उठा सकूँ।
हाँ…… प्रयास कीजिये, ताकि मैं प्रखंड बन सकूँ।
आपका अपना
“सनोखर”
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