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सिलसिले हजार बन गए है …..

Amargyan
Amargyan
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सिलसिले हजार बन गए है …..

सिलसिले हजार बन गए है
मंजिले आज भी वही थम गयी है .
देखता हूँ राह उनका .
पग्दंदियो के सुनी राहों पे .[1]

जहा से कदमो की आहट सुनाई देती है .
भाग वही जाता हू ……..
फिर वही पत्तों की आवाज सुनाई देती है
जो थोड़ी देर पहले ही सुन कर आया था .[2]

कुछ ऐसी ही सिलसिले बन गये है
दिन और रात एक हो गए है .
पर मैं सदियों से इंतजार करता रहा .
एक होने की वो रात अभी नहीं आई !
एक होने की वो रात अभी नहीं आई ! [3]

सिलसिले बढते गए
कहानिया बनती गयी .
हम कभी विलन होते तो अभी
हीरो बन के सामने होते . [4]

वो सिलसिले कुछ ऐसी बन रही थी
जो हर रास्ते पे एक चौराहे का रूप ले रही थी .
हम जिस मोड़ बे जाते वाही गलत निकल जा रही थी .
कौन सा सही था यह पता करना बड़ा कठिन था .[5]

पर जो हो रहा था
शायद वो खुदा को मंजूर न था .
वो हमसे दूर जा चुकी थी .
पर समय की करवटो ने उन्हें एक बार फिर मिला गया .[6]

*******
अमरेश बहादुर सिंह
(Amresh Bahadur Singh)

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