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भारत को आजाद हुए सात दषक बीत चुके हैं। सैंकड़ों वर्षों से भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग, अलग-अलग भाषा, परिवेष और धारणाओं के साथ रहते आए हैं और यही भारत की विलक्षणता है जो उसे विष्व में एक अलग ही स्थान प्रदान करती हैं। अलग-अलग धर्म के लोग, उनकी विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक रीतिरिवाजों का अब तक अन्य सभी वर्गों ने आदरपूर्वक स्वीकृति प्रदान की है इसी कारण से भारत में आज तक देष की जनता में एकता और अखण्डता बनी रही।
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भारत की तुलना में अन्य देषों की जनता की साक्षरता दर, आर्थिक स्थिति, राजनैतिक स्थिति और सामाजिक स्थिति बिल्कुल ही भिन्न है इसलिए यदि भारत की तमाम व्यवस्था में सुधार लाने के लिए यदि हम विदेषों से उनकी व्यवस्था सीख कर उसे उसी प्रकार यहां पर लागू करने का प्रयास करते हैं तो असफलता निष्चित ही सामने होगी क्योंकि यहां की सामाजिक व्यवस्था का तानाबाना इस प्रकार बंधा हुआ है कि यदि एक को छेड़ा जाये तो पूरे का पूरा सिस्टम हिलने लगता है और एक को बदलने के लिए पूरा बदला जाना अति आवष्यक है।
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जिस प्रकार वर्तमान में भारत में धर्म की राजनीति होने लगी है वहां पर सुधारवाद कम और अलगाववाद अधिक दिखाई दे रहा है। जहां एक और हिन्दुत्व के नाम पर अन्य वर्ग पर हिटलरषाही चलाई जा रही है, अनेकों प्रकार की बंदिषें जैसे कोई महिला और पुरूष का साथ, मांसाहार पर प्रतिबंध, शराब पर आवष्यकता से अधिक लगाम लगाया जाना, इत्यादि। जिससे आम जन को अंग्रेजों के दिन याद आने लग रहे हैं। वहीं दूसरी और सेकुलरिज्म वाली सोच के लोग जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बताकर फिर से वही धर्म की इस राजनीति से ओझी ख्याति प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। जो इस देष की एकता और अखण्डता की जड़ों में विष घोलने से कम नहीं है।
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हाल ही में प्रख्यात गायक सोनू निगम ने जिस प्रकार का वक्तव्य दिया वह या तो उनके मानसिक दिवालियेपन को जाहिर करता है या फिर वह जानबूझकर अन्जान बनकर राजनैतिक ख्याति प्राप्त करने के फेर में पड़ रहे हैं। सोनू निगम का कहना है कि सुबह मस्जिदों में दी जाने वाली अजान से उनकी नींद खराब होती है इसलिए अजान को बंद कर दिया जाना चाहिए। ईष्वर को तेज आवाज में सुनाने की क्या आवष्यकता है? यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो मुद्दा उन्होंने उठाया है यदि इस तेज आवाज की समस्या का निदान प्राप्त करना ही है तो समस्त तेज आवाज से होने वाले शोर को और अन्य इस प्रकार की अन्य समस्याओं को एक बेहतरीन कानून बनाकर हल किया जा सकता है। जिसमें मस्जिदों के साथ-साथ मन्दिर, गुरूद्वारे और अन्य सभी धर्मस्थलों में लाउडस्पीकर से उक्त धार्मिक स्थलों से बाहर आवाज न जाये ऐसे नियम बनाये जाने चाहिए। सड़कों पर अचानक बड़े धार्मिक और राजनैतिक जुलूस निकाले जाने बैन किये जाने चाहिए क्योंकि उनसे निष्चित ही ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ, पटाखों द्वारा वायु प्रदूषण, आग लगने का खतरा, ट्रैफिक जाम और रूट बदलने के कारण आम जनता की परेषानियों का हल निकाला जाना चाहिए। शादी-ब्याह में जुलूस के शक्ल की बारात सड़कों पर पूर्णतः पाबंदी लगाई जानी चाहिए और बैंड-बाजे-बारात वाले रिवाज निष्चित ही आम जन की बहुत बड़ी परेषानी का सबब है।
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यदि बात अजान की जाये वह तो मात्र एक-दो मिनट की होती है जो अक्सर गहरी नींद में सोये लोगों को जगा सकने में सक्षम नहीं, अगर मान भी लिया जाये कि मात्र दो मिनट की अजान से कोई नींद से उठ सकता है तो निष्चित ही रोजाना मस्जिदों में भारी संख्या में नींद को छोड़कर नमाजी आ ही जाते होंगे!
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किन्तु वहीं दूसरी ओर जो सारा दिन का शोर और अनेकों इस प्रकार की परेषानियां जब जनता के सामने आती हैं तो उनकी नींद तो पहले से ही उड़ जाती है जो उन्हें एक अच्छी गहरी नींद भी नहीं दे पाती…….
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