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आज गाय को लेकर राजनैतिक अखाड़े में तमाम तरह की अखाड़ेबाजी चल रही है। वास्तविक धरातल पर गाय की क्या स्थिति है इससे किसी को कोई सरोकार नहीं, मात्र गाय का नाम ही काफी है जो इंसान को इंसान का खून बहाने के लिए काफी है और इसका भान बेचारी गाय को कहां? आखिर वो गाय जो ठहरी। भले ही कितने लाभ गाय में क्यों न हों लेकिन गाय मां होने के नाते उस पर जरा घमंड नहीं करती। बच्चे मां को लेकर आपस में लड़ मरते हैं लेकिन मां आखिर अपने बच्चों को लड़ते-मरते देखकर उन्हें क्यों नहीं रोक पाती यहीं बहुत बड़ी विडम्बना है कि क्यों एक मां अपने बच्चों को अपने लिए ही लडकर मरते हुए उन्हें क्यों नहीं रोकती? इस दुनियां में अगर हम जरा नजर मारें तो जन्म देने वाली मां जब कभी अपने बच्चों को दुख में देखती है तो किस प्रकार अपने बच्चों के लिए तड़प उठती है। किस प्रकार वह अपने बच्चों के सुख के लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार रहती है और यदि कभी इस प्रकार की स्थिति आ जाये कि उसके जन्म दिये हुए दो संतानें भी किसी भी कारण वष या कभी अपवादवष उसके लिए लड़ने लगते हैं तो वह उनकी सुलह कराने के लिए आगे आती हैं और उनकी सुलह करवा देती हैं लेकिन आष्चर्य होता है कि किस प्रकार गाय माता अपने पुत्रों को अपने सामने लड़ते मरते हुए देखते हुए भी क्यों नहीं कुछ बोल पाती, मां का हदय अपने बच्चों के लिए करूणामय होता है फिर क्यों वह कुछ नहीं कहती?
यदि धर्म के अनुसार बात की जाये तो गाय हमारी माता है क्योंकि इससे हमें अनेक प्रकार के लाभ हैं इसलिए गाय को माता माना गया हैं। इस प्रकार जो हमें लाभ पहुंचाये तो हमें उसे किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। तो प्रष्न यह उठता है कि क्यों हम स्वयं को लाभ पहुंचाने वाली उन वस्तुओं केा नजरअंदाज कर देते हैं जो हमें और हमारी माता को जीवित रखती हैं। अभिप्राय है कि क्यों हम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं? क्यों हम जीवित वनस्पति और पेड़ों को मात्र इसलिए काटते हैं क्योंकि उससे हमें धन लाभ होता है। आज हमें इस बात की इतनी आवष्यकता नहीं है कि हम पेड़ों को काटकर पुस्तकें बनायें क्योंकि आज के टेक्नोलाॅजी के युग में डिजीटल पुस्तकें भी पढ़ी जा सकती हैं। क्यों हम पेड़ों को काटकर रोजाना लाखों टन लकड़ी मात्र अंतिम संस्कार करने के लिए स्वाहा कर देते हैं। क्या प्रकृति हमारी सबसे बड़ी माता नहीं जो गाय और अन्य सभी जीव जन्तुओं को जीवन देते हैं? इसका हमें कुछ ऐसा उपाय निकालना चाहिए जिससे हमारी सारी मातायें जीवित रह सकें और हम वास्तव में अपनी सभी माताओं-पिताओं की वास्तविक सेवा कर सकें।
-अमर सिंह, देहरादून।
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