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वर्तमान समय में महिला सषक्तिकरण के अनेकों कानून बनाये गये हैं। कारण महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में कमी लाना और महिलाओं को भी पुरूषों के समान वह तमाम अधिकार प्रदान करना जिससे महिलायें सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम हो सके। किन्तु मौलिक रूप से देखने में यह आता है कि महिलाओं के सषक्तिकरण को लेकर आवष्यकता से कहीं अधिक अनेकों इस प्रकार की बातें सम्मिलित हैं जो महिलाओं और पुरूषों की समानता पर प्रष्नचिन्ह लगा देती हैं। अनेकों बार तो यह देखने को भी मिलता है कि उनको मिलने वाले अधिकारों का वह दुरूपयोग कर पुरूषों को प्रताड़ित किया जाता है।
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छेड़छाड़, बलात्कार का प्रयास, मानसिक प्रताड़ना, दहेज और अनेकों इस प्रकार के कारण है जिनका उपयोग कई महिलायें बड़ी आसानी से किसी को फंसाने में कर लेती हैं। अनेकों मामलों में स्त्रियां सही होती हैं किन्तु अनेकों मामले ऐसे भी होते हैं जहां पुरूष निर्दोष निकलते हैं। असामाजिक तत्वों में जहां पुरूषों का वर्चस्व है वहीं महिलायें भी पुरूषों से कहीं पीछे नहीं है किन्तु स्त्री को निर्बल, हीन और प्रयोग की जानी वाली वस्तु समझकर उन्हें प्रायः पुरूषवर्ग द्वारा जो सहानुभूति दिखाई जाती है अक्सर उसी प्रवृति का लाभ उठाकर असामाजिक गतिविधियों में लिप्त महिलायें किसी शरीफ व्यक्ति का मिनटों में चीरहरण कर उनका भरपूर लाभ उठा लेती हैं। उदाहरणस्वरूप सड़क में चलते हुए यदि कोई तेजतर्रार महिला गाड़ी चलाते समय एक्सीडेंट कर बैठती है तो अक्सर वह पुरूष को ही दोषी ठहराकर हर्जाखर्चा मांगने लगती है। ऐसे समय में अक्सर बीच बचाव करवाने वाले मात्र स्त्री का पक्ष हीरो बनने के फेर में साथ देने लगते हैं। इसी प्रवृत्ति के कारण अक्सर ऐसी महिलायें समाज में पुरूषों से अधिक स्त्री विरोधी हैं क्योंकि जैसे पूरे तालाब को मात्र कुछ गन्दी मच्छलियां गन्दा कर देती हैं ठीक उसी प्रकार सम्पूर्ण स्त्रीवर्ग कुछ चुनिंदा असामाजिक महिलाओं के कारण स्त्रियों की छवि समाज में खराब कर उनके और पुरूष के मध्य असामानता के होने का स्वयं कारण बन जाती हैं। जो महिला उत्थान के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
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जहां तक आरक्षण का प्रष्न है, महिलाओं को अवष्य ही आरक्षण मिलना चाहिए किन्तु इसके साथ ही इस बात पर विषेष ध्यान देना चाहिए कि गरीबी एवं विकलांगता के आधार अधिक महत्वपूर्ण होने चाहिए बजाय लिंगभेद के आधार। न्याय व्यवस्था में भी इस प्रकार के परिवर्तन होने चाहिए जिससे अनावष्यक रूप के जातिगत आरक्षण न दिये जायें। आरक्षण का आधार शारीरिक विकलांगता और आर्थिक स्थिति होनी चाहिए। बिना साक्ष्यों के मात्र महिला के कहने भर से पुरूषों के प्रति अन्याय नहीं होना चाहिए। अनेकों बार यह बात जब बाद में सामने आती है कि उक्त पुरूष बेकुसूर था लेकिन उससे पहले ही समाज में उसके चरित्र का चीरहरण हो चुका होता है। अतः इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी को स्त्री और पुरूषों के प्रति समान दृष्टि का भाव रखना होगा और तभी यह संभव होगा कि महिलायें वास्तव में पुरूषों के समान सषक्त, आत्मनिर्भर और गौरवपूर्ण जीवन यापन करने में सक्षम हो सकेंगी।
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