soch
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नही रहा वटवृक्ष हमारा
सर पर कोई छाँव नही
चढ़ी धूप है जीवन की
शीतलता की आस नही
आते जाते कभी कभी
सानिध्य उनका पा लेते थे
कुछ अपनी भी कह लेते थे
कुछ उनकी भी सुन लेते थे
उनके ही स्नेह प्यार से हम
कठिनाई भी बुन लेते थे ।
अब नही सूझती राह कोई
ठोकर पे ठोकर खाती हूँ
खुद को छुपा अंधेरे में
कुछ पल को रो लेती हूँ ।
उनकी भरी हुई आँखे
महसूस आज भी करती हूँ
उनकी यादों से लिपट लिपट
आज बहुत ही रोती हूँ…@mishra
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