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प्रेम के रोग बीमारी नियर …

Kuran ko Jalaa Do ... BuT क्यूँ ?
Kuran ko Jalaa Do ... BuT क्यूँ ?
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आप सभी आदरणीय को  नमस्कार !

 काफी दिनों से ब्यस्त योजना की वजह से मैं उपस्थित नहीं हो पाया इसके लिए क्षमा चाहूँगा . 

एक बार फिर उपस्थित हूँ एक ठेठ रचना के साथ. आप सबके आशीर्वाद की अपेक्षा बेशब्री से है.

यह  रचना एक  प्रेमिका की बिरह ब्यथा है. जो वर्षो से अपने प्रीतम के इन्तेजार में पल-पल बिता रही है .

और एक दिन अपने प्रीतम की आने की खबर सुन कर भाव विभोर हो जाती है |

और बाकि आपके सामने प्रस्तुत है ….कृपया मेरे त्रुटियों को बेझिझक सुझाए .

 

सुनके खबर आवे के रउरो, images2
जाग के रात बितावत बानी.
भोर भइल मन मोर भइल,
पुआ पकवान बनावत बानी.
देख दोपहरी बेचैन भइल मन,

कंठ के काहे सुखावत बानी.
अब जिन देर करी प्रीतम,

मन में इहे बात दुहरावत बानी.

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मन में ख़ुशी नयन में पानी ,
लेके राह तिकावत बानी,
अखिया बिछल राह में रउरे,
आदर सहित बुलावत बानी.
प्रेम स्नेह से ब्याकुल बा मन,
भरी परात नयन के पानी.
मन हर्षित चहू ओर देखत बा,
केने से रऊआ आवत बानी.

सोलहो सृंगार से देह भरल,images5
गहना से बदन छुपावत बानी.
प्राण-प्रिय के निक लागब का ,
शीशा में मुह निहारत बानी.
पल-पल बीते महिना नियर,
तन के ब्याकुलता बढ़ावत बानी.
बाट निहारे में बीत गइल दिन,
साझ के दीप जलावत बानी.

 

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प्रेम के रोग बीमारी नियर,
कैसे होई रोग से दूर, जवानी .
कौनो खबर न कौनो पता ,

फिर भी मन के बहलावत बानी,
हे प्रिय देर करी जनि अईसे,
हाथ जोरी बिनती करितानी .
अखियाँ बिछल राह में राउरे
आदर सहित बुलावत बानी.

आप सबका शुभचिंतक अमित देहाती

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