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तुम अपने आधार बदल लो, रंग ढंग त्यौहार बदल लो.
खाना पीना बदल लिए हो, अब नफरत और प्यार बदल लो,
जो साझा है, रगों रगों में, उसको कैसे बिसराओगे,
जिसके आँचल पले बढे हो, इसकी ही रोटी खाओगे,
जो छाती बारूद बांधकर, पैटर्न टैंक से भिड निकला था,
जान नहीं दी’ थी नेहरु पे, वो भारत माँ पे छितरा था,
जिसने माँ को अलग कर दिया, उसका सर्वनाश तो तय है,
आर्यावर्त का कण कण माँ का, हर स्वर भारत माँ की जय है,
तोड़ सको तो तोड़ो रिश्ता, फेर सको तो फिर मुँह फेरो ,
गले लगो जा जयचंदों के, पीर अली से रिश्ते जोड़ो
लेकिन शर्त यही है, की जब गले उतरने लगे निवाला
आँख मिला के कह देना, जा भारत माँ तुझे भुला डाला,
यही विविधतता इस मिट्टी की, इसमें हर रंग की फसलें हैं,
भगत सिंह के वंसज हैं तो शोभा सिंह की भी नसले हैं,
हमें क्षोभ है यही की ये सब सुनकर भी क्यूँ जिन्दा है,
कुछ ऐसे हैं, जो माँ को माँ कहने में भी शर्मिंदा हैं.
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