व्यंग वाण ...थोडा मुस्कुरा लें.....
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वो किया जो करना नहीं चाहते, जो ना दे सुकून उसमे मशगूल हैं,
ना रहा दो घड़ी अपने ऊपर यकीं, आजकल हम खुद ही अजनबी हो गए,
रात आ आके फिर से डराती हमें , वक़्त क्यूँ भागता जा रहा है कहीं
हमने अपनों को आवाज़ दी थी मगर, खुद ही फिर चल दिए महफिलें छोड़कर
बीती बातें यूँ सरगम सी लगती रहीं, जैसे साँसों को एक बांसुरी मिल गयी,
उसका आना ना आना, बेमतलब रहा, उसके आने की जब एक वजह मिल गयी,
वो जो दरकार थी, दोस्त की इसलिए, एक लम्हा भी हम बेवजह जी सकें,
कोई मुद्दा न हो, कोई मकसद न हो, सिर्फ बैठे रहे, और कुछ ना कहें,
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