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सहसा विश्वाश नहीं हुआ जब टी वी पर सुना की हिन्दुस्तान ने जिम्नास्टिक में पदक हासिल किया है…२० साल पुराना वो वक़्त याद आ गया…. जब हम लोग आपस में शर्त लगाया करते थे … की हिन्दुस्तान के लिए जिम्नास्टिक में पदक हम ही लेके आयेंगे… जिम्नास्टिक में हमेशा से रूसी खिलाड़ियों का वर्चस्व रहा है…
नाडिया कोमनेचे का परफेक्ट १० का विडिओ तो हमने हज़ारों बार देखा होगा.. जोश तो तब भी बहुत था… पर लक्ष्मी व्यायाम मंदिर की उन पत्थर जैसे जूट के गद्दों पर फ्लोर एक्स्सर साइज़ करके रुसी जिमनास्टों से मुकाबला करना तो दूर ढंग से समर साल्ट मारना भी सीख लेना , किसी आश्चर्य से कम नहीं था…..
कॉमन वेल्थ में हिन्दुस्तान ने १०१ पदक जीते और लोगों का सीना गर्व से फूल गया… पर खिलाडियों की जिन्दगी की जमीनी हकीकत से नावाकिफ लोग शायद वो अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते……कि हिंदुस्तान के खिलाड़ी किन विषम और दूभर परिश्थ्तियों से जूझ कर ये मुकाम हासिल कर पाते हैं…….आधे लोग तो अपनी लड़ाई रास्ते में ही छोड़ देते हैं………
मेरे साथ के कई बेहतरीन जिमनास्ट तो शायद आज झाँसी कि गलियों में कहीं ऑटो-रिक्शा चला रहे हैं तो यदि कोई किस्मत से स्पोर्ट कोटे में टी. टी बन गया तो रेलवे में टिकेट काट रहे हैं……विकास सारस्वत , अविनीस गुप्ता , श्याम लाक्षाकार, भानु , आदि कुछ ऐसे नाम हैं…जो १९९० के दौरान झाँसी जैसी छोटी जगह से उठे हुए , हिन्दुस्तान में.. जिम्नाटिक कि नीव रखने वाले वो जुझारू लोग थे जिन्हें कॉमन वेल्थ के आशीष कुमार कि तरह एक रूसी कोच तो नहीं मिला पर उहोने ये सपना जरूर देखा था….. मेरी तरह आज उन सभी के सीने में वो सुकून जरूर होगा……
असल में जिम्नास्टिक एक महंगा खेल है….और हिन्दुस्तान की सरकार को ये भरोसा कभी नहीं हुआ कि हिन्दुस्तान कभी भी जिम्नास्टिक में पदक जीत सकता हैं……ऐसा और भी कई खेलों के साथ हुआ….जहाँ लोग पहले पदक जीत लाये और फिर सरकार ने सहूलियतें देना शुरू किया,,,,…..जब हमारे राष्ट्रीय खेल हौकी के खिलाडियों की मैच फीस तक प्राधिकरण डकार गया… तो जिम्नास्टिक जैसे खेलों के बारे में तो आप सरकार से क्या ही उम्मीद कर सकतें हैं जहाँ तक तो मीडिया की नजर तक नहीं जाती…
१९९० के यू पी स्टेट जिम्नास्टिक चेम्पियन-शिप के दौरान खेल प्राधिकरण के पास फ्लोर एक्स्सर साइज़ कराने के लिए फ्लोर तक नहीं था… तब निर्णय लिया गया की फ्लोर एक्स्सर साइज़ , नारायण बाग़ की घास पे कराई जायेगी………. सुबह से बिना खाए पीये हम सब नारायण बाग़ पहुचे…वहां पूरे शहर के लोग पिकनिक मना रहे थे……. सभी खिलाड़ियों को आदेश दिया गया की इन पिकनिक मनाने वाले लोगो को यहाँ से भगाओ……ये सब करते करते दोपहर के दो बज गए……भूख के मारे बुरा हाल था…..और फिर नारायण बाग़ में शुरू हुई …….अंतराज्जीया जिम्नास्टिक चेम्पियन-शिप. ….. स्पोर्ट्स ड्रेस के नाम पर सभी खिलाड़ियों को एक बनियान और एक निकर दी गयी थी….यही एक मात्र खर्च था जो सरकार ने जिम्नास्टिक के नाम पे किया था,,,,
….और शायद यही एक मात्र लालच था जिसके लिए हम लोग दोपहर की धूप में जिम्नास्टिक के नाम पर पसीने बहा रहे थे….
आज आशीष कुमार को जब हिन्दुतान के लिए जिम्नास्टिक में पदक जीतते देखा… तो ख़ुशी से आँखे भर आयी….उम्मीद करता हूँ……सरकार इस दिशा में कुछ सार्थक कदम उठायेगी और जिम्नास्टिक के लिए जमीनी तौर पर कुछ सार्थक प्रयास करेगी..
आशीष कुमार को ढेरों आशीर्वाद और बहुत बहुत बधाईयाँ ………
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