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सड़क से नीचे एक ढलान से उतरती एक पतली सी गली, गली की चौडाई देख के लगता की मानो इसे इस हिसाब से बनाया गया हो, की तिपहिया ऑटो रिक्शा दीवारें बचाते हुए निकल जाए, आश्चर्य तब होता , जब गली के अंत में खडी कुछ कारों को देख के लगता की वाकई ये इस गली से होके ही यहाँ पहुँची हैं,
पकड़ पकड़ , दौर खे पकर, ….मुडी से मार , मुडी से,…..
गली के अंत में , हाफ पैंट और बनियान पहने फुटबाल खेलते कुछ बच्चों का द्रश्य,……
गली के दोनों तरफ की नालियों को आज गोल पोस्ट की संज्ञा दी गयी थी,
हाँ ये, तय कर लिया गया था, की गोल होते वक्त यदि बाल नाली ना पार करके नाली में ही गिर पड़े तो भी उसे गोल ही माना जाएगा…
आज चूंकि नगर पालिका वाला, नाली से कूड़ा साफ़ करके नाली के किनारे टिका के चला गया था, इस उम्मीद में, कि पानी बरसेगा, और कूड़ा , जिन घरों से आया था, वापिस उन्ही घरों में चला जाएगा,
अफ़सोस कि ना तो पानी बरसा , ना कान्ग्रेस की सरकार गिरी, कमबख्त सारी विपदाएं एक साथ आ पडी थी,
इस कूड़े के ढेर के चलते, बाल का नाली पार करना काफी मुश्किल हो गया था, गली के मुहाने पे , मनमोहन सिंह को चुनौती देते, खड़े बिजली के दो खम्बे, हालत जर्जर थी पर झुके नहीं थी, बाबत इसके, कि उन पर लादे नगर निगम चुनावों के दो पोस्टर इस बात का अहसास करा रहे थे, कि हाल के चुनावों में कोंग्रेस ने मुंह की खाई हैं,
कि तभी, एक आईस क्रीम वाले ने घंटी बजाते हुए, मोहल्ले के तारतम्य को भंग किया, उसके डब्बे पे लिखे , २० रूपए, और साथ में खीसे निपोरते चिदंबरम साहब की फोटो, आईस क्रीम वालों को भी खबर थी, चिदम्बरम साहब के महान विचारों की, कि गेहूं महँगा हो गया है, तो क्या हुआ, देस का गरीब आईस क्रीम क्यों नहीं खाता , वो तो महंगी नहीं हुई,
अफ़सोस कोई गरीब, आईस क्रीम खरीदने नहीं आया, इसके दो ही मतलब हो सकते थे,
या तो देस के गरीब भूखे नहीं थे,
या आईस क्रीम, हाई जिनिक नहीं थी,
ये चिदंबरम साहब का सोचना है,…
क्योंकि महंगाई क्या चीज़ होती है, ये तो उनके दिमाग में आता नहीं,
अब भई अदरक क्या जाने बन्दर का मिजाज,
यहाँ अदरक का मतलब है जनता, हैं,…औराप क्या चाहते हैं, अब मैं बन्दर का मतलब भी बताऊँ आपको….
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