Menu
blogid : 522 postid : 5

एक कॉलेज के समय की कविता…

व्यंग वाण ...थोडा मुस्कुरा लें.....
व्यंग वाण ...थोडा मुस्कुरा लें.....
  • 31 Posts
  • 48 Comments

 

मुझे बुरा भी कह लो , मुझ को सुनना अच्छा लगता है

 

अपने अंतर्मन में खुद को, गुनना अच्छा लगता है..

 

लोग कहें पागल दीवाना, फिर भी यार बगीचे में,

 

मुरझाये फूलों को ही बस, चुनना अच्छा लगता है…!!

 

मुझे बुरा भी कह लो , मुझ को सुनना अच्छा लगता है

 

बड़ी बड़ी बातें करते , वे लोग बड़े हैं,

 

करें राष्ट्र निर्माण स्वार्थ के लिए लड़े हैं,

 

उन्हें कंगूरा बनाना अच्छा लगता है तो लगने दो,

 

हमको तो नीवों की खातिर, मरना अच्छा लगता है,

 

मुझे बुरा भी कह लो , मुझ को सुनना अच्छा लगता है

 

मैंने प्यार किया था दिल से, फिर भी उनसे कहाँ नहीं.

 

दो पल का जो साथ मिला, प्यारा था हमको गिला नहीं..

 

अच्छा है, ये बातें भी, जल्दी ही यादें बन जाएँ..

 

उनकी यादों से ही दिल बहलाना अच्छा लगता है…

 

मुझे बुरा भी कह लो , मुझ को सुनना अच्छा लगता है

 

मैंने हरदम अपने दुश्मन का भी अच्छा सोचा है,

 

फिर भी किश्मत ऐसी है, कि हरदम ही दिल रोता है….

 

उनको नफरत करना अच्छा लगता है तो लगने दो…

 

हमको नफरत कि नज़रों में, जलना अच्छा लगता है…

 

मुझे बुरा भी कह लो , मुझ को सुनना अच्छा लगता है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh