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भले नहीं हिंडोले लगे आसमान के , ना दीखते चोंचले अरमान के , ना किरण हाथ उगे जहांन के, सदी अब कह रही, उम्मीद हैं तेरे चट्टान के………. 0 हो रहा एक बार फिरसे जवान, खुल चले हैं मौन कमान , महाभारत औ लंका सा खुला संग्राम, ना रहे संकोच, ना सोंच विश्राम के, सदी अब कह रही , उम्मीद हैं तेरे चट्टान के…………. 0 बहती हवाओं में देख पवन वेग, ना कम्पित हो, जोड़ ले सारे उद्द्वेग, धरा मचल उठे जो निकले समवेत तेग , आसमान तक खींची रहेगी चमक भाव के, सदी अब कह रही , उम्मीद हैं तेरे चट्टान के ………. 0 ———————– @= अमित शाश्वत.
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