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बड़े जतन से जोडे प्रश्नोत्तर की “मिलन कुमारी (कॉपी )” देखा एक दिन भरबित्ते की सजी आलमारी , हाय “मिली “मिली भी ना ,
अब कैसे हो दिल की दिल से यारी,
सूखे सावन- भादो,ग्रहण लगे घर – अंगना ,
आपको अब क्या कहना …….
पुराने इतिहास पुरुषों के कागजी नजराने
ओझल हुए जैसे आज रह गए मगज मराने ,
ओह क्षमा करना वीरगति से अफ़साने ,
सूखे सावन – भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना ,
आपको अब क्या कहना ……..
आने जाने वाले को आ जाएँ होश ,
पता पा जाएँ कैसे इनको हुए इत्ता जोश ,
कहाँ किसके है डर, किसे है जाना किस रोज ,
सूखे सावन -भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना ,
आपको अब क्या कहना ………
गलने लगी दाल ससुराली , जीजा करें रखवाली
बाँट किये बिन अंदर ही चल निकली दलाली ,
दम साधे कितना , कौन करे हिलहवाली,
सूखे सावन -भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना ,
आपको अब क्या कहना ……….
कहा इक दिन, सुनिए अच्छा नहीं किया ,
कागजी बोझ फेंक गलित कर लिया ,
उन्होंने कहा ये बोझ नहीं लोच है,
इसमें खाली मनसंतोष का खोंच है ,
सूखे सावन -भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना,
आपको अब क्या कहना …..
ना रहा जब घर “वसन ना धृत ढेला” ,
उड़ाएं उपहास फुलझरी , करेला बनने लगे बेला ,
जीवन संग्राम हुआ , उन सबको भाए ये खेला ,
सूखे सावन -भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना ,
आपको अब कहना क्या……..
सपने में आ ही गए कविवर आत्मानंद औ चेला ,
बोले अब तलक़ जित्ते बांच लिए , सब नहीं था रे रेला ,
लोहा से लोहा कटे, मेला को झमेला ,
सूखे सावन -भादो , ग्रहण लगे घर -अंगना ,
आपको अब क्या कहना ………
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