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(१) जबसे हरिआ के बाबू चहुँप गइलें रजधानी गऊंआं भर के ढो लेलें ,राजनीति में जवानी , हालत इहां तकले की ,बंद बा बबुआ के कथा – कहानी , केवनो ओरिआ अब बाजे ना गीत – भजन आ करताल गंऊवां के गलिआ में हो गईल रोज के हरताल . (२) देवरु के हो गइल जे सरकारी नोकरी मिल गइल बिया ‘यार ‘ बोली वाली छोकरी , माई बुझे वोला बबुआ , भइलें बेकहल दाई नीयन ,उनके सोझा ,हमरा लागेले हांकल , सभका एक्के संगे बइठल , हो गइल भादो के परसाल गऊँआ के गालिआ में हो गइल रोज के हरताल . (३) बाबूजी आ अम्माजी के त बन भइल बा बोली गावँ – घर में बाजे गीत जैसे बड़ुए फटहा होली , नइहर के पूछवइया फोन – मेसेज ,बनल अब सहेली छोटकी के फिकिर कपार चढ़ल , देख ज़माना के चाल , बड़को बबुआ फ़ैल करे लागलन हर एक साल गंऊआ के गालिया में हो गइल रोज के हरताल . (4 ) टोला से सूरुजवा दबंग भइल बा मुखिया , चार जाना नवही चलेलन लेइ के दू नलिया , अटारी पीट के गावँ – जवार के भइल सबसे सुखिया , टहल – टिकोरा करेला गावँ , बनल बा दुखिआ , बूढ़ा – बूढ़ी के बेमारी से घर बनल बा अस्पताल कहीं का – एह घर में त रह गइल बानी फटेहाल, गँउवा के गालिया में हो गइल रोज के हरताल . (5) गावँ के जोड़ा -पारी में , बाँचल बाड़ें इहे बुरबक संइया कोल्हू के बैल से बेगार में करतानी हरवहीआ , हमरे प गरम रहस ,सउसे दुनिया में बनस सिद्धवैया हमरा कहेलन बासी – गीला , कइके मुहवा भभूक लाल टीभीऐ देख कटरीना बहकस ,त हमरो बिगड़ जाले लए – ताल , गँउवा के गालिया में हो गइल रोज के हरताल ….# ———————-@ अमित शाश्वत
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