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थक हार
खा दुख दर्दो की मार
कवि झमूरालाल पहुंचे प्रभु दरबार
पूरी शिद्दत से इबादत से
की एक ही गुहार
थक गया हार गया
हर समस्या की मार खा गया
खड़ा तेरे ही द्वारा है,
तू ही जीवन सहारा है ।।१।।
मेरी भी सुन
अपने भक्तों में चुन
वरदान की पेटी खोल दे
एक देवास्त्र मुझे सौंप दें
या
ताकत दे, बुद्धि दे, ऐसी कोई घुट्टी दे
अनंत शक्तियों की रामबाण बूटी दे
एक ही प्रहार सब चित जाँए
सम्मान में सहस्त्र शीष झुक जाएँ
न राम अवतार, न कृष्ण का वार
न नरसिम्महा, न असुर दहाड़
व्यर्थ जाए प्रत्येक प्रहार
मुझे अमर अजय बना दे
मेरे सपनों को हरी झंडी दिखा दे ।।२।।
यहाँ मांग क्या हुई
हड़कंप मच गया
आपातकालीन सभा हुई
झमूरालाल हिट हो गया
देवों के दिमाग में फिट हो गया
रावण और कंस जैसा व्यक्तित्व भी पिट गया ।।
सोच विचार कर बुद्धि इस्तेमाल
प्रस्तुत किया गया झमूरालाल
आते ही नारद ने तीखे बाण छोड़े
भन्नाएं हुए जबान के घोड़े दौड़े
क्या रे ?
समझ नहीं है
कुछ भी हांकता है
ज्ञान और बुद्धि नहीं
ताकत माँगता है,
बाणों का रोक वार
झमूरालाल कर गए पलटवार
ज्ञान तो हाउसफुल है
ताकत की बत्ती गुल है
ज्ञान कहो तो मुझसे ले लो
अमरता का चूर्ण चटा दो ।।३।।
बिगड़ते देख भाव
इंद्र ने किया बीच बचाव
तुरंत एक कलम मँगवाया
झमूरालाल के हाथ में थमाया
बोले
शिद्दत से इबादत से
मजबूरी में या आदत से
दिल की जलन, मंन की खलन
सपनों के राज दुनिया के काम-काज
सबका सहारा पूर्ण हो ख्वाब तुम्हारा ।।४।।
कलम देख झन्ना गया
इंद्र को आंखों से खा गया
ताकत चाहिए बहाना नहीं
अस्त्र मांगा था खिलौना नहीं,
अरे खिलौना नहीं ब्रह्मास्त्र है
कमजोर नहीं सशक्त है ।।
तहजीब के शब्दों की
सरफरोशी तमन्ना है
जीवन धरातल है
आसमानी सपना है
गहराई का ज्ञान
झूठ की जबान
सब लिख जाता है
कोरे पन्ने पर दाग जाता है,
मनुष्य जीव-जन सबको जाना है
बड़े से बड़ा महल धराशाही हो जाना है
न रावण रहा, न राम रहे
न कंस जिया, ना कृष्ण जीए
न सोने की लंका, न राम अयोध्या
न कौरवो की सेना, न पांडवों का खेमा
रह गया नाचीज दाग
जिससे लिखा महाभारत भाग ।।५।।
अमरता की कुंजी है
जीवन सार पूंजी है
ख्वाब है, यकीन है, आदत है
चाह है, ताकत है
जमीर की इबादत है
कविता है, अफसाना है, कहावत है
दिल से दिमाग की करामत है
हकीकत की सपनों की इमारत है
हँसने हँसाने की बनावट है
सतयुग की कलयुग की फाटक है
अच्छाई बुराई एक नाटक है
जीवन सा कीमती दंगों सी आफत है
इस नाचीज कलम की यह ताकत है ।।६।।
इंद्र की बातें सुन पगला गया,
गुस्से में या खुशी से बौरा गया
आंख बंद कर कलम चला गया
आंख खुली तो यह कविता रह गया ।।७।।
-अमित सिहं
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