basti ki jai
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महगाई कय मौसम आवा॥
रोवे लरिका मलाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
अठन्नी चवन्नी केहू न पूछे॥
सौ रूपया मा भरी न पेट॥
डीजल इतना महागा होइगा॥
सूख गवा गेहू कय खेत॥
बड़की बिटिया पड़ी कुवारी॥
कौने हाट बिकाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
माल दार कय बतिया सुन के॥
थर थर कांपे हाड॥
अक्ल तो हमारी गुमसुम भैली॥
लागत अबतो निकले प्राण॥
फताही कुर्ती पहिन के घूमी॥
कौने दर्जी सिलाई का॥
दाल रोटी तो जुरत नहीं बा।
बढ़िया माल खिलायी का॥
प्रस्तुतकर्ता 007 पर ३:५४ AM
2 टिप्पणियाँ:
संजय भास्कर ने कहा…
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
बहुत खूब, लाजबाब !
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