Menu
blogid : 27631 postid : 32

विद्यालय और कोविड

anahat
anahat
  • 4 Posts
  • 1 Comment

चारों तरफ कोविड का खौफ फैला हुआ है। होना भी चाहिए जीवन बहुत महत्वपूर्ण है। यदि जीवन है तो सब कुछ है। जीवन बाकी सभी साधनों का उपार्जन भी करता है और उपभोग भी करता है। इसीलिए तो रोटी कपड़ा और मकान में रोटी सबसे पहले आता है। स्कूल भी तो रोटी की व्यवस्था करते हैं।

 

 

मिड डे मील के रूप में बच्चों के एक समय के रोटी की व्यवस्था हो जाती है और कपड़े अर्थात ड्रेस और किताबों के नाम पर जो सरकारी स्कूलों में बच्चों को पैसा दिया जाता है। उससे उनके अभिभावक के लिए कुछ समय हेतु रोटी की व्यवस्था करने का उपाय हो जाता है। इसी कारण तो हमारे स्कूल सरकार के होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । शासन चलाने के साधन है।

 

 

पहले राजनीति के विविध चुंबकीय क्षेत्रों से स्कूल जुड़े हुए नहीं थे। पर आजकल स्कूल मुख्य चुंबकीय केंद्र बन गए हैं। अतः सरकार को इस चुंबकीय केंद्र में सूनापन देखा नहीं जा रहा है। क्योंकि सरकार का प्रायोजक तंतु अगर सूना है तो फिर सरकार को अपने अस्थिर होने का डर तो होगा ही। अभी-अभी खबर आई है कि स्कूलों में बच्चों को आधी आधी संख्या में बुलाया जाएगा । इसका मतलब हुआ की आधे संख्या के बच्चों को ही रोटी की व्यवस्था सरकार कर पाएगी। यह तो कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं होता है । सरकार ऐसा करके लोगों के मन में असंतोष पैदा कर देगी ऐसा नहीं होना चाहिए।

 

 

 

अब स्कूलों को मेले में तब्दील करना बहुत जरूरी है। उनकी रौनक लौटानी ही पड़ेगी। अतः स्कूल जरूर खुलने चाहिए। अरे किसी एक बच्चे से तो स्कूल चलता नहीं है। अतः किसी एक बच्चे के साथ अगर कोई हादसा हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है बाकी बच्चे तो सरकार के होने में सहयोग तो कर ही रहे हैं। स्कूलों को जरूर खोल देना चाहिए।

 

 

 

पता नहीं क्यों सरकारों को इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही है और विशेषज्ञों के ऊपर मानसिक दबाव डाले बैठे हैं कि हमें प्लान दीजिए। वैसे एक बात मैं बता दूं यह सृष्टि आदि काल से बिना प्लान के जितनी अच्छी तरह से चलती है प्लान के साथ हमेशा धोखा ही करती है। इसलिए सरकारों को पहले स्कूल खोलना चाहिए फिर प्लान के बारे में सोचना चाहिए।

 

 

 

वैसे भी यह कोविड कब खत्म होगा यह तो किसी को पता है नहीं। तो फिर प्लान के चक्कर में क्यों पड़ना। अरे सरकार है तो स्कूल भी हैं और स्कूल हैं तो सरकार भी है इसलिए स्कूलों को खोल ही देना चाहिए। कुछ ऊपर नीचे होने के बारे में सोचने से समय बर्बाद होगा। और वैसे भी स्कूलों से निकले हुए सभी लोग शतायु ही होंगे यह भी तो प्रमाणित नहीं हो पाया है आज तक। सरकारों को आगे बढ़ना चाहिए सकारात्मक होना चाहिए जिसको अंग्रेजी में पॉजिटिव कहते हैं।

आइए स्कूलों की रौनक लौटाते हैं स्कूल चलते हैं। पॉजिटिव रहिए।

 

 

 

 

डिक्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी तरह के आंकड़े या दावे का समर्थन नहीं करता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh