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blogid : 2387 postid : 378

धन्य ह���ई ���ै

kavita
kavita
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आजन्म संगति की अप���क्षा प्रिये-

गुण–दोषों सहित स्वीकार्य

हुई हूँ–धन्य हुई मै ,

खींचा है आपके प्रेम ने मुझे

सींचा है आ���ने  सपनो को मेरे

���्रेम की ये परिभाषा

आपने है सिखाया

प्���िये ! हमारा अस्तित्व इ���

दुनिया म���ं रहेंगे क���यामत तक

शपथ है मेरी मै  न जाऊंगी

रह न पाऊँगी

देखे बिना आपके एक झलक

सात जन्मो से �������ंधी हूँ म���

आगे सात जन्मो तक

सात फेरे के बंधन है

मै न जाऊंगी

त���ड़कर ���े बंध�������

प्राण न्योछावर है आप पर

आप���े ही सीखा है

प्रेम की परिभाषा

धन्य हुई मै ।।

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