kavita
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बूँद न टपक जाए पलकों से
थाम लूं हाथों से सपनो को
बंद पलकों से सपने क्या ख़ाक गिरेंगे
खोल लो इन बंद पलकों को
आँखों ने रची थी साजिश
पलने न देंगे ख्वाबों को
बुनने न देंगे ज़िन्दगी के
उधड़े तानो बानो को
लाख बचा लो सपनो को
है वो रेत का महल आखिर
टूटेगा सपना गिरेगा महल
सच्चाई हो जायेगी ज़ाहिर
पलके है अस्मत आँखों की
नज़रों को नज़रों से बचाना है
खुले पलकों में ऐ कमबख्त
ख्वाव कैसे पलता है .
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