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ये धूप की बेला

kavita
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ये धूप की बेला
ये छांव सी ज़िन्दगी
न चांदनी रात
न सितारों से दिल्लगी

जमी हूँ मै शिला पर –
बर्फ की तरह
काटना है मुश्किल
ये पहाड़ सी ज़िन्दगी

थम जाती है साँसें
पलकें हो जाती है भारी
भरकर तेरी आहें
आंसूं बहे है खारी

अनजाने अजनबी तुम
जीवन में यूं आये
हसीं ख्वाब मेरे
तुमने यूं चुराए

मन की चोर निगाहें
ढूंढें परछाईं मेरी
हवाओं की सरसराहट
पैगाम लाती थी तेरी

वो भूला सा शख्स
ये यादों का बज़्म
तेरी याद में लिख दिया
ये दर्द भरा नज़्म

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