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हिंदी ब्लॉगिंग ‘हिंग्लिश’ स्वरूप को अपना रही है। क्या यह हिंदी के वास्तविक रंग-ढंग को ���िगाड़ेगा या इससे हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी?…..contest

kavita
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उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देना आसान नहीं है | एडमिन को बधाई देती हूँ की उन्होंने उपरोक्त विषय को चुना | बहुत ���ठिन है हिंगलिश के स्���रूप के बारे में बात करना और बहुत आसान है हिंगलिश में टाईप कर के राय जाहिर करना | मै��� क्या ये सभी को पता है की हिंदी टाइपिंग का ज्ञान सबको न���ीं ह������ा ह��� | इसक��� लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्��������ता होती है | ऐसे में हिंगलिश स्वरुप को अपनाने म���ं मुझे कोई आपत���ति नज������ नहीं आती | बल्कि �����ि���ने क���  ये तरीका आसान व ���र्वग्रा���्य है | हालांकि कुछ अक्षरों को लिखना कभी कभी मुश्���िल हो जाता है पर आशय को समझाने में फिर भी सक्षम हो जाते है |

आज भी हिंदी पाठकों की कमी नहीं है | कभी कभी हिंदी किताबों की अनुपलब्धता पाठकों को निराश कर देती है | ऐसे में ये आभासी दु�����िया मानो हिंदी पाठकों के लिए वरदान है जहां पर हिंदी सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती है फिर चाहे वो साहित्य से सम्बंधित हो ���ा सूचना से | म�����रा तो मानन��� या है की ‘हिंग्���िश’ स्वरूप को कार्यालयों में ���ामील कर ���ेन��� चाह�����ए जिससे हिंदी में कार्य ���रने के इच्��������क कर्मचारी हिं���ी ���ें आसान��� से क������ कर सके |

���िंदी की वास्तव���कता क��� बिगड़ने या स���वारने का जिम्मा केवल रचनाकार पर होता है | माध्���म चाहे ���ोई भी हो लिखने की कला ही ������सी रचना को ऊपर उठाता है या धराशायी करता है | आज हम हिंगलिश स्वरुप की वजह से लिख���े में एक स्���तन्त्रता का ���नुभव करते है | अपने व���चारों को आसानी से प्रकट कर सकते है | अब हमें किसी प्रशिक्षित टंकक के सहारे बैठना नहीं पड़ता | ���्या ये हि���गलिश स्वरुप ���े बिना स���्भ��� हो पाता? हाँ एक बात अवश���य है की इसमें अभ��� सुधार की आवश्यकता है | कभी कभी शब्दों क��� लिखने की असफ���ता के कारण वा���्य म�����ं बदलाव क���ने पड़���े ���ै | जिस���े वाक्य ���ी गरिमा घट जा���ी ह��� | इसमें निरंतर सु���ार की आवश्यकता ह��� और जानकार���ं से ये अपेक्षित ���ी है |

���������ा व्यक्तिगत अनु���व य��� ���हता है की हिं���ी ब्लोगिंग में ‘हिंगलिश’ स्वरुप मील का पत्���र साबित होगा | बड़े ���ड़े ���ाम���ीन लेखको����� ���े लेकर न���ान्तुकों ने इस वि���ा को ���ड़े आसानी से अपना ���िया ���ै |इससे न केवल एक ���िक���षित समाज का निर्माण होग��� बल���कि ये समाज की बुराइओ को उख���ड़ फेंक���े मे��� ��������ायक सा���ित होगा |हिंदी वह भाषा है जो भारत में मातृभाषा र���पी विभिन्न फूलों को एक सूत्र मे��� पिरो क��� भारत माता के गले के हार का सृ���न करती है |

सफल ल���खक प्रेरणा के लिए अवसरों को खोजते नह���ं बैठते��� वे तय समय पर नियमित र���प से कलम ���ाग़ज़ ���ा क��������्यूटर पर लिखने बैठ���े हैं।और अक्सर तब हिंगलिश को ही माध्�����म बनाया जाता है। यह हर भारतीय, देश-विदेश के हिंदी प्रेमियों, विद्वानों और शिक्षकों के लिए गर्व की बात है। ऐसे में ब्लोगोंग ���ें अगर हिंगलिश स्वर���प को अपनाय��� जा रहा है तो इस���ें बुरा क्या है ?इससे हिंदी ���ास्तविक रंग ढंग में क���ई गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा ये ���ेरा दृढ सोच है |

सुरसरि सी सरि �����ै कहाँ मेरु स���मेर समान।
�����न्म���ू���ि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।।

प्रत���दिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल���
नहीं जन्म भर हम सके जन्���भूमि को भूल।।

‘हरिऔध’ जी ������ ल���खी हुई ये धारदार पं���्���ियाँ को पढने के लिए आज ���िसी प���स्�����क भण्डार के सहारे बैठ���ा नहीं पड़ता स��� कुछ आ���ासी दुनिया में उपलब्ध है | और ये केवल ‘हिंग्लिश’’ टंकण के कारण ही सम्भव हुआ है |

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