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मैं एक लड़की हूँ , मेरे अनुभव

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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मैं एक लड़की हूँ मुझे इस बात का गर्व है। ईश्वर द्वारा रचित एक अदभुत् रचना हूँ जिसे ईश्वर ने ममत्व त्याग मोह शब्द से रचकर परिपूर्ण बनाया है। अत: मुझे अपने लड़की होने पर गर्व है।

मैं स्त्री पुरूष दोनों को जन्म देती हूँ एक नये समाज का निर्माण करती हूँ। पर समाज शायद इस सत्य को जानते हुए भी हम लड़कियों को दोयम दर्जे की पद पर रखता है ये पितत्व समाज अपने अभीमान के समक्ष हमें हमारे हक की लड़ाई लड़ने से पहले ही कुचल देने की चेष्टा करते हैं और हर बार ये अपने शारीरिक बल प्रयोग कर हमारी दृढ़ निश्चय को तोड़ते हैं। हमारी भावनाओं को काँच की भाँति चकनाचूर करते रहे आजतक नारी का अपमान होता रहा उसके आँसू बहकर सुख गए पर अत्याचार और जुल्म करने वालों के सीने में मोह का अंकूर तक न फुटा।

पर इन सबसे अलग मैंने अपने जीवन के अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। मेरे चार बहन और दो भाई हैं पर आज तक हमारे माता-पिता ने हमें लड़के-लड़की की स्पर्धा में शामिल नहीं किया ऐसा कुछ भी न होने दिया जिससे कि हमारे मन में ये बात आए कि हम लड़कों से कम हैं या हमारे भाईयों का मान हमसे अधिक होता है। हमारे माता-पिता ने हमें समान अधिकार दिये हम सभी भाई-बहन सरकारी स्कूल से ही दसवीं उत्तीर्ण हुए। मुझे आज भी याद है मेरे पिता ने जब मेरी बड़ी बहन को इन्जिनियरिंग पढ़ाने के लिए पहल की तो समाज और सगे-संबंधियों के तानों ने मेरे पिता की आँखों में आँसू ला दिये उस वक्त मूझे एहसास हुआ कि क्या लड़की होना इतना बड़ा गुनाह है कि हम अपनी मर्जी से उच्च पढ़ाई भी नहीं कर सकते, पर मेरे माता-पिता अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे और उसका परिणाम आज यह है कि मेरी बहनें उच्च शिक्षा हासिल कर अच्छे पद पर आसीन हैं और मैं आगे चलकर एक अच्छा Business Man बनना चाहती हूँ ताकि मेरे पिता मूझ पर गर्व करें और समाज के उन लोगों का मूँह बंद हो सके जो लड़की को बोझ, पाप की गठरी और ना जाने क्या-क्या सम्बोधित करते हैं।

मैं ईश्वर से यह प्रर्थना करती हूँ कि वो मुझे इतनी शक्ति दे कि मैं अपनी मंजिल पा सकूँ।

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