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मैं एक लड़की हूं, लड़की जो दुनिया बदल सकती है। मैं न तो झांसी की रानी हूं, न इन्दिरा गांधी, न किरण बेदी और न ही मैं दुर्गा मां हूं। पर मैं इन सबसे आगे हूं। इसकी वजह यह है कि मैंने इन सभी महान महिलाओं को जाना है। इनसे कुछ न कुछ सीखा है। लड़कियां भी आगे बढ़ सकती हैं। ये बातें तो किताबों में लिखी होती है।
दूसरी तरफ है हकीकत की दुनिया। हम लड़कियां जब धरती पर आती हैं, तभी से कठिनाइयों की शुरुआत हो जाती है। जब पता चलता है कि मां के गर्भ में बेटी है, तो उसे मार दो, यदि नहीं मारा गया तो लड़की के जन्म पर कोई उसे देखने नहीं आता। कोई खुश नहीं होता (महिलाएं भी नहीं)। किसी तरह से उसका पालन-पोषण किया जाता है। उस बेटी पर कोई ध्यान नहीं देता। उसके सपनों और जरूरतों की कोई चिंता नहीं की जाती। हर तरह से, हर रिश्तों में, हर बात पर हम लड़कियों को ही बलिदान की शिक्षा दी जाती है और यही करना भी पड़ता है। हर मोड़ पर जिन्दगी हमारा इम्तेहान लेती है। इस सबके बावजूद हम पढ़कर जीवन में आगे बढ़ती हैं। हम बहुत कुछ करतीं हैं अपने देश और परिवार के लिए। यह सब थीं मेरी मन की बातें।
आज मैं जीवन के एक ऐसे अनुभव से परिचित करवाना चाहती हूं, जो शायद ही किसी ने किया होगा। एक लड़की की जब शादी होती है, तो वो हजार सपने लिए ससुराल आती है। पर तब क्या होता है, जब उसका हर सपना टूट जाता है। उसकी मानसिक हालत बिगड़ने लगती है। पर फिर भी वह बिना हार माने जीवन से लड़ती है। सबको खुश रखने की कोशिश करती है। हर रिश्ता निभाती है, लेकिन उसकी फिक्र कोई नहीं करता। कोई उसकी आवाज नहीं सुनता।
जब औरत के साथ ज्यादती होती है, कभी-कभी कानून से भी सहारा नहीं मिलता। जिस कानून के पास जाओ, उत्पीड़न का दिन, महीना, तारीख पूछा जाता है। अगर एक भी जवाब गलत, तो अपराधी सजा से बच जाता है। ऐसा ही एक औरत के साथ हुआ। उसकी ससुराल वाले उस पर अत्याचार करते थे। बहाने बना कर उसे मारते-पीटते। तरह-तरह की बातें सुनाते। फिर भी वह चुप रहती। सब कुछ सहते-सहते उसकी मानसिक अवस्था बिगड़ने लगी। जब उस औरत के माता-पिता ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी, तो हर अत्याचार का ब्योरा पुलिस ने दिन- तारीख के साथ मांगा। अदालत में भी यही सब हुआ। सुनवाई के दौरान महिला एक घटना की सही तारीख नहीं बता पाई। बस, इसी चूक पर ससुराल वाले बच गये। उस प्रताडि़त औरत के दो बच्चे थे। किसी तरह उसने पाला-पोसा और बड़ा किया। वह भी इसलिए कि उसके पति का थोड़ा सा सहारा मिला हुआ था। कुछ वक्त के बाद उसकी मानसिक अवस्था इतनी बिगड़ गई की उसने जहर खा कर खुदकुशी कर ली। आज उन बच्चों के पिता ने दूसरी शादी कर ली। बच्चों को दादी के पास छोड़ दिया, वही अत्याचार सहने के लिए जो उसकी मां ने सहे थे। वो बच्चे तो आवाज नहीं उठा सकते। वे कहा जाएंगे?
वह औरत मेरी मां थी। वह इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसका भोगा हुआ दुख मेरे बुरे अनुभव का हिस्सा है। मैं बस इतना पूछना चाहती हूं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मै भी एक लड़की हूं और मैं अपना भविष्य अपनी मां की तरह नहीं देखना चाहती। ठ्ठ
कृति राज
अरविन्द महिला कालेज पटना
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