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उस दिन सवालों का सागर उमड़ पड़ा था

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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जब से मैंने होश सम्भाला है, मैं बस यही सुनती आई कि हमारे परिवार में लड़के और लड़की के बीच कोई अन्तर नहीं है। दोनों हमारे लिए बराबर हैं। ये कहना था मेरे माता-पिता का और मैंने उसे आंखें बन्द कर मानने की कोशिश भी की। पर न जाने क्यों वो कहते कुछ थे पर करते कुछ और। एक लड़की होने के नाते मुझे कई छोटी-छोटी बातों पर डांट खानी पड़ती।

 

फिर मैंने मान लिया की शायद यही दुनिया की रीति है। और फिर मेरे माता-पिता मेरा बुरा तो नहीं ही सोचेंगे। यहीं पर मैं गलत थी। एक दिन की बात है जब मैं नौंवीं कक्षा में पढ़ती थी। अपने दोस्तों को जीन्स पहने देखती तो मेरे मन में भी इच्छा हुई कि एक बार मैं भी इसे पहनूं। मैं सलवार-कमीज में आत्मविश्वास नहीं महसूस कर पाती थी। मैंने अपनी अभिलाषा पिता जी के समक्ष रखी। उनका जवाब था-अभी नहीं, जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तब सारे शौक पूरे कर लेना।

 

खैर, इतना कह कर पापा तो वहां से चले गए पर मेरे अंदर सवालों का सागर उमड़ पड़ा। एक लड़की को शादी के पहले अपने माता-पिता के इशारों पर चलना है, शादी के बाद पति के मनमाफिक और बाद में सयाने हो चुके बच्चों की इच्छा के अनुसार। वह आखिर अपना जीवन अपनी मर्जी से जीती कब है? जब मैंने तो आज तक नहीं देखा पापा को अपनी पत्नी (अर्थात मेरी मां) की इच्छा पूरी करते हुए, तो मैं कैसे विश्वास करूं कि कोई पुरुष पति बनने पर मेरी इच्छाएं भी कभी पूरी करेगा?

 

फिर ‘सुबह’ हुई, मेरी नई जिन्दगी की और उस सुबह की पहली किरण को साक्षी मान कर मैंने प्रण लिया कि भले ही मेरी सारी इच्छाएं पूरी न हो पर मैं लड़ूंगी। बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के उपरान्त मेरे माता-पिता मुझे डाक्टर बनाना चाहते थे क्योंकि वह लड़कियों के लिए सुरक्षित होता है पर मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना चाहती थी। उन्होंने तीखा विरोध किया। मैंने सोचा अगर आज मैं रुकी तो शायद फिर कभी नहीं बढ़ पाऊंगी और न जाने वो कौन सी शक्ति थी, जिसने मेरे आगे, लगातार महीनों चली बहस के आगे मेरे घर वालों को झुका दिया। लेकिन मैं जानती हूं, ये अंत नहीं है। आगे, फिर मेरे माता-पिता मार्केट सेफ्टी का सवाल लेकर मेरे कदमों को रोकने का प्रयास करेंगे। पर अब मैं तैयार हूं और मैं जीवन में बहुत आगे जाना चाहती हूं ताकि एक दिन अपने घरवालों से और दुनिया वालों से गर्व से कह सकूं ‘हीरा अगर है बेटा, तो सच्चा मोती होती हैं बेटियां।’

 

श्रद्धाश्री

पटना वीमेंस कालेज

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