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अब ठान लिया है कि अत्याचार नहीं सहूंगी

सपनों को चली छूने
सपनों को चली छूने
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मैं एक लड़की हूं। एक लड़की किसी की बेटी, किसी की बहन, किसी की पत्नी तो किसी की मां बनती है। वह एक साथ कई संबंध सारी जिंदगी निभाती है। इस तरह के न जाने कितने ही रिश्ते मेरी भी जिंदगी में भी हैं या होंगे। मेरे माता-पिता मुझे भी वहीं शिक्षा दे रहें  हैं, जो मेरे भाई को मिली। मुझे भी वही परवरिश दी गई, जो भाई को मिली। मेरे पिताजी भी यहीं चाहते हैं कि मैं खूब पढ़ूं और  कुछ बनूं। मैं भी अपनी जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहती हूं अपने लिए। मैं और लड़कियों की तरह शादी के बंधन में बंध कर अपने पति के घर जाकर उसकी गुलाम बन कर रहना नहीं चाहती हूं। बहुत अच्छा लगता है जब मेरे माता-पिता मुझे मेरे अन्य भाई बहनों से ज्यादा प्यार करते हैं। मुझे अब तक की जिंदगी में उनसे बहुत सारी चीजें सीखने को मिलीं। वे किसी भी चीज के लिए मुझे मना नहीं करते, अगर वो सही हो। वे मुझसे हर बात करते हैं। वे अच्छे माता-पिता तो हैं ही, अच्छे दोस्त भी हैं।

इस सबके बावजूद मेरी अब तक की जिंदगी में कुछ ऐसे भी पल आये, जिन्हें याद करके मैं कांप उठती हूं। मैंने मन में ये बात ठान ली कि मैं अपने ऊपर हुए अत्याचारों को कभी नहीं सहूंगी। मैं अपने सपनों को छू कर कुछ बनना चाहती हूं।

पूजा

जे.डी. विमेंस कालेज पटना

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