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वाकई लड़की होना गर्व की बात है लेकिन इसका कारुणिक पक्ष भी है। कुछ लोग हमें लक्ष्मी का रूप मानते हैं तो कुछ निर्धनता का। कहीं हमें अभिशाप समझा जाता है, तो कहीं हमें वरदान माना जाता। इन सब बातों के बावजूद मुझे फक्र होता है कि मैं एक लड़की हूं। आज लड़कियों को बड़े पैमाने पर नौकरी दी जाती है। हम बाहरी दुनिया से रू-ब-रू हो रही हैं। फिर भी समाज में ऐसी विडंबनाएं मौजूद हैं, जिनसे लड़कियां बहुत आहत होती है।
सौभाग्यशाली हूं कि मेरी दुनिया थोड़ी अलग है, जहां मैं अपने पापा की प्यारी हूं, उनकी उम्मीद हूं, उनका विश्वास हूं। मेरा जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ है। बचपन से ही हम भाई-बहनों को समान रूप से प्यार मिला है। हमें अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरी छूट दी गई है। पापा हमेशा यहीं करते कि बेटियां बेटों से कम नहीं। अंतर सिर्फ इतना है कि उन्हें मौका नहीं मिलता। पापा ने मुझे पूरा मौका दिया। शुरू से इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई की। उसके बाद इन्टरमीडिएट के लिए एम.डी.डी.एम कालेज में एडमिशन लिया और आज यहीं से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर रही हूं। आगे और ऊंची उड़ान भरना चाहती हूं। उम्मीद है, मुझे आगे भी भरपूर मौका मिलता रहेगा।
उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है, हौसला है तो मौजों में भी किनारा है। इसके बावजूद शादी की बात सोच कर कभी-कभी मुझे डर भी लगता है। अगर पापा ने मेरी शादी कर दी, तो मेरे सपनों का क्या होगा? मेरे रिश्तेदार इसके लिए दबाव डालते हैं। कहते हैं,बेटी बड़ी हो गई, उसकी शादी कर दो, वरना बाद में पछताओंगे। जमाना खराब है, लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है, कब हाथ से छूट जाए। मैं एक पत्रकार बनना चाहती हूं। टीवी जर्नलिस्ट बरखा दत्ता से काफी प्रभावित हूं। दुनिया को आईना दिखाना चाहती हूं जिससे लड़कियां लड़कों के साथ कंधों से कंघा मिला कर चलती रहे। मुझे यकीन है कि मैं अपने सपनों को पूरा करूंगी। पापा का विश्वास टूटने नहीं दूंगी। इस संघर्ष के लिए मेरा परिवार मुझे पूर्ण सहयोग देगा।
विनीता जायसवाल
एम.डी.डी.एम. कालेज, मुजफ्फरपुर
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