Menu
blogid : 26906 postid : 41

जालियांवाला बाग़ – निर्दोष आसुंओं के 100 साल

www.jagran.com/blogs/Naye Vichar
www.jagran.com/blogs/Naye Vichar
  • 42 Posts
  • 0 Comment

आजादी का जश्न हम सभी मनाते हैं और मनाना भी चाहिए लेकिन इस आजादी को पाने के लिए कितने लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं उसका हिसाब रखना भी जरुरी है। इतिहास गवाह है कि आजादी हमें इतनी आसानी से नहीं मिली है। कई माँ की गोद सूनी हुई , कई औरतों के श्रंगार छूट गए, बहनों के भाई बिछड़ गए , पुत्र – पुत्री  ने अपने पिता को खोया, गाँव ने अपने लाल को खोया, देश के टुकड़े हुए – तब जाकर हमें आजादी मिली। उसी आजादी को लेने के लिए या पाने के लिए एक नृशंस हत्याकांड अंग्रेजो द्वारा किया गया – जिसे हम जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जानते हैं। इस नृशंस हत्याकांड के 13 अप्रेल 1919 को 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। आजादी के जश्न में हम याद रखें उन सपूतों की जिन्होंने हँसते – हँसते देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। ऐसे ही लोगों के बल पर हमारा देश अभी खड़ा है।

अमृतसर शहर में 7 एकड़ क्षेत्र में फैला चारो तरफ से चहारदीवारी से घिरा एक मैदान है जिसे जालियांवाला बाग़ के नाम से जानते हैं। यह बाग़ अमृतसर शहर के स्वर्णमंदिर के पास ही है। वैशाखी का पर्व पंजाब में काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी वैशाखी के दिन अर्थात 13 अप्रेल 1919 को रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए सभी लोग वहां एक सभा का आयोजन कर रहे थे। तब उस समय की ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्‍ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्‍थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश  भी की, लेकिन रास्‍ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे। जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। बताया जाता है कि सैनिकों के पास जब गोलियां खत्‍म हो गईं, तभी उनके हाथ रुके। कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है। यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का शिकार  हो गए थे। कितने लोगों ने अपनी जानें गंवाई – इसकी सही जानकारी अभी तक हमलोगों को प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार लगभग 400 लोगों ने अपनी शहादत दी।हत्‍याकांड की पूरी दुनिया में आलोचना हुई। आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का पदावनत कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। डायर सेवानिवृत होने के बाद लदंन में अपना जीवन बिताने लगे। लेकिन 13 मार्च 1940 का दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन साबित हुआ। उनके द्वारा किए गए हत्याकांड का बदला लेते हुए उधम सिंह ने केक्सटन हॉल में उनको गोली मार दी। सिंह एक भारतीय स्वाधीनता सेनानी  थे और कहा जाता है कि 13 अप्रैल के दिन वो भी उस बाग में मौजूद थे जहां पर डायर ने गोलियां चलवाईं थी और सिंह एक गोली से घायल भी हए थे। जलियांवाला बाग की घटना को सिंह ने अपनी आंखों से देखा था। इस घटना के बाद से सिंह डायर से बदला लेने की रणनीति बनाने में जुट गए थे और कहते हैं कि वीर सावरकर की प्रेरणा से साल 1940 में सिंह अपनी रणनीति में कामयाब हुए और उन्होंने जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की मौत का बदला ले लिया। 13 मार्च 1940 की उस शाम लंदन का कैक्सटन हॉल लोगों से खचाखच भरा हुआ था। मौका था ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक का। हॉल में बैठे कई भारतीयों में एक ऐसा भी था जिसके ओवरकोट में एक मोटी किताब थी। यह किताब एक खास मकसद के साथ यहां लाई गई थी। इसके भीतर के पन्नों को चतुराई से काटकर इसमें एक रिवॉल्वर रख दिया गया था। बैठक खत्म हुई – सब लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर जाने लगे। इसी दौरान इस भारतीय ने वह किताब खोली और रिवॉल्वर निकालकर बैठक के वक्ताओं में से एक माइकल ओ’ ड्वायर पर फायर कर दिया। ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई। हाल में भगदड़ मच गई। लेकिन उन्होंने भागने की कोशिश नहीं की। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । ब्रिटेन में ही उन  पर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दी गई। उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्‍हीं के नाम पर रखा गया है। जलियांवाला बाग हत्याकांड की जानकारी जब रवीन्द्रनाथ टैगोर को मिली,तो उन्होंने इस घटना पर दुख प्रकट करते हुए, अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि को वापस लौटाने का फैसला किया था। टैगोर ने लॉर्ड चेम्सफोर्ड, जो की उस समय भारत के वायसराय थे, उनको पत्र लिखते हुए इस उपाधि को वापस करने की बात कही थी। इस हत्याकांड को लेकर ब्रिटिश सरकार ने कई बार अपना दुख प्रकट किया है, लेकिन कभी भी इस हत्याकांड के लिए माफी नहीं मांगी है। साल 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ-2 ने अपनी भारत की यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग का भी दौरा किया था। जलियांवाला बाग में पहुंचकर उन्होंने अपने जूते उतारकर इस बाग में बनाई गई स्मारक के पास कुछ समय बिताया था और 30 मिनट तक के लिए मौन रखा था। भारत के कई नेताओं ने महारानी एलिजाबेथ-2 से माफी मांगने को भी कहा था। वहीं भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने रानी का बचाव करते हुए कहा कि रानी इस घटना के समय पैदा नहीं हुई थी और उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए। जलियांवाला बाग नरसंहार की तरह और भी कई नरसंहार भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हुए हैं जिन पर इतिहासकारों का आजतक उतना ध्यान नहीं गया है – उदाहरण के लिए हम गुजरात का भील विद्रोह, संथाल विद्रोह आदि को रख सकते हैं – जिनका दमन ब्रिटिश शासकों द्वारा बहुत ही निर्ममतापूर्वक किया गया।

जलियांवाला बाग आज के समय में एक तीर्थ स्थल बन गया है और हर रोज हजारों की संख्या में लोग इस स्थल पर आते हैं। इस स्थल पर अभी भी साल 1919 की घटना से जुड़ी कई यादें मौजूद हैं। आज भी इस हत्याकांड को दुनिया भर में हुए सबसे बुरे नरसंहार में गिना जाता है या इसे ब्रिटिश शासन के काला अध्याय भी कह सकते हैं। इस साल यानी 2019 में, इस हत्याकांड को हुए सौ साल होने वाले हैं लेकिन अभी भी इस हत्याकांड का दुख उतना ही है जितना सौ  साल पहले था। वहीं इस स्थल पर जाकर हर साल 13 अप्रैल के दिन उन लोगों की श्रद्धांजलि दी जाती है जिन्होंने अपनी जान इस हत्याकांड में गंवाई थी- यह आज एक तीर्थ क्षेत्र बन गया है। जीवन में एक बार इस पुण्य क्षेत्र में हमलोगों को सपरिवार जरुर जाना चाहिए।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh