- 42 Posts
- 0 Comment
नजीर अकबराबादी ने ‘आदमीनामा’ नामक कविता लिखी है। कविता में आदमी के बिभिन्न रूपों को दिखाया गया है। कविता पढने से मनुष्य के हर रूप का पता चलता है। फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे हों। कोई मनुष्य मदद करेगा तो कोई मनुष्य मारने के लिए दौड़ेगा। कोई हाथ पकड़कर चलना सिखाता है तो कोई पैर खींचकर गिराता है। कोई इज्जत लेता है तो कोई इज्जत को संभाल देता है। यह सत्य है कि दुनिया में दोनों प्रकार के इन्सान हैं। आज की दुनिया पाखंड की दुनिया है। अपने लालच और ज्यादा फायदा के लिए बाकी के दूसरे लोगों के भविष्य से खेलते हैं। सब लोग अपने को साफ़-सुथरा बताने के चक्कर में रहते हैं। एक मद्यपान करनेवाला दूसरे मद्यपान करनेवाले का बारे में बता रहा है कि वह बहुत ज्यादा सेवन करता है। यानी पहलेवाला कम सेवन करने के कारण अपने को साफ़-सुथरा बता रहा है। मेरी तो समझ में यही आ रहा है कि दोनों सेवन करने वाला गलत है। मैंने एक मित्र के घर में देखा कि मित्र मांसाहारी भोजन लेते हैं लेकिन कुछ दिनों को छोड़कर। मैंने पूछा कि उस दिन क्यों नहीं लेते? उनका उत्तर आया कि वह दिन भगवान की पूजा करते हैं। अब क्या समझें? बाकी दिनों को क्या भगवान ने नहीं बनाया है? मेरे एक मित्र मांसाहारी भोजन दिन के 12 बजे के बाद लेते हैं। पूछने पर पता चला कि उनकी माताजी बारह बजे तक पूजा – पाठ करती हैं – इसीलिए वे उस वक्त तक मांसाहारी भोजन नहीं करते हैं।
धर्म को माननेवाले पहले धर्म को समझें। सभी कोई शालीनता और सभ्यता की सीमा अपने हिसाब से तय करता है। देश के बाहर की स्थिति देखते हैं – एक देश में आतंकियों ने एक धर्म विशेष के लोगों की अकारण हत्या की तो उस धर्म विशेष के लोगों ने दूसरे देशों में उस धर्म के लोगों की हत्या कर दी। मारनेवाला भी इन्सान ही था। कई सौ लोग मारे गए। लेकिन बचाने के लिए हजारों लोग लगे हुए थे। दोनों कार्यों में मनुष्य ही शामिल है। सोचने वाली बात यह है कि क्या मानवता शर्मसार नहीं हुई? मरने – मारने से क्या लाभ हुआ ? कुछ लोगों की कट्टरता के कारण पूरी मानवता ही खतरे में पड़ गयी है। इन कुछ निम्न स्तर के लोगों के ऊपर क्या मानवता का पाठ नहीं पढाया जा सकता है? उनको भी समझाया जा सकता है। यह अहंकार की लड़ाई है। छोटा व्यक्ति का छोटा अहं तथा बड़े व्यक्ति का बड़ा अहं होता है। यदि सभ्यता को बचाना है तो छोटी – छोटी बातों को छोड़ना होगा। प्रकृति ने हर प्राणी के रहने-खाने के लिए पर्याप्त संसाधन दिए हैं। लेकिन मनुष्य ही उन प्राणियों में एक ऐसा प्राणी है जिसे लालच है। भविष्य की चिंता है। इसी लालच और चिंता के कारण दूसरे प्राणियों के अस्तित्व पर संकट आ गया है।
संसाधन कम होते जा रहे हैं। पानी खरीदकर पीयेंगे – यह मैंने कभी भी नहीं सोचा था। आजकल की स्थिति देखकर लगता है कि आने वाले समय में शुद्ध पेयजल भी मिलना खतरे में पड़ जाएगा। साफ पानी तथा साफ़ वायु का पूर्णत: अभाव होता जा रहा है। लोग कहते हैं कि मरना है ही तो सोचा क्यों जाए? अभी शान से जी लिया जाए। जीने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन आनेवाली पीढ़ी के लिए भी कुछ बचाकर रखें। यही शाश्वत सोच होनी चाहिए। सारे संसाधन को यदि हमारी वर्तमान पीढ़ी ही समाप्त कर देगी तो आनेवाली पीढ़ी को उत्तर देना मुश्किल हो जाएगा। हमारी सोच सब के लिए हो। हम आज नहीं सुधरे तो आने वाली पीढ़ी को कुछ नहीं दे पाएंगे क्योंकि तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मैं केवल निराशावादी दृष्टिकोण लेकर नहीं चल रहा हूँ। अच्छी बातें भी समाज में हो रही हैं।
मनुष्य एक जुगाड़ प्राणी है तथा समाज तथा देश या परिस्थिति बदलने की क्षमता मनुष्य में है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। मनुष्य यदि सोच लेता है तो कुछ भी असंभव नहीं रहता है। बस थोडा सब्र करने की आवश्यकता पड़ती है। सब्र करने से सब कुछ ठीक हो जाता है। बिद्युत चालित छोटे – छोटे उपकरणों के इस्तेमाल से मनुष्य के धैर्य की सीमा समाप्त हो जा रही है। अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि ये जिन्दगी रंगमंच है –अच्छे – बुरे लोग अपने – अपने किरदार को निभाने की कोशिश करेंगे। सभी अपने – अपने किरदार को ठीक से निभाएं तो कहीं कोई परेशानी नहीं है क्योंकि नाटक में अंत में सत्य की ही जीत होती है।
Read Comments