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संसार में लोग सत्य भी बोलते हैं और मिथ्या भी। सवाल है कि मिथ्या वाचन क्यों करते हैं? सीधा-सा उत्तर है – भय से। यह भय कई प्रकार का हो सकता है। प्रत्येक जीव प्रायः तीन प्रकार की तृष्णाओं से घिरा होता है:-वित्तेषणा, पुत्रेष्णा, लोकेषणा। तो यह भय भी इन्हीं तीन कारणों से होगा। लोग धन कमाने के लिए मिथ्यावाचन करते हैं। संसार में नाम हो , यश हो , प्रसिद्धि हो – इसके लिए मिथ्यावाचन करते हैं। कभी – कभी संतान की ख़ुशी के लिए भी मिथ्यावाचन करते हैं। जब कोई आपत्ति हो, सम्मान का प्रश्न हो, कोई निजी स्वार्थ हो, किसी प्रकार का लोभ हो, क्रोध हो तो लोग मिथ्यावाचन करते हैं। मेरे एक मित्र ने अपने संतान के विवाह के समय मिथ्यावाचन कर विवाह करवा दिया। लेकिन वह विवाह अधिक दिनों तक टिका नहीं रह सका। मित्र को पता था लेकिन मोहवश वो अपने मिथ्यावाचन को रोक नहीं पाए। वित्त पोषण के लिए भी बड़े – बड़े अभिकर्ता प्रायः मिथ्यवाचन का ही सहारा लेते हैं। कितने अभिकर्ताओं को मैंने देखा है कि जीबन बीमा करवाते समय कितने बड़े – बड़े दावे करते हैं और व्यक्ति को बीमित करवा देते हैं। लेकिन किसी प्रकार की दुर्घटना होने के बाद वही अभिकर्ता दिखाई नहीं देते हैं और बीमित व्यक्ति के घरवाले बीमा की राशि के लिए दिन-रात दौड़ते हैं।
राजनेता यश कमाने के लिए जनसभाओ में कितने लम्बे चौड़े दावे करते हैं। उन्हें पता है कि यह दावा पूरा होनेवाला नहीं है। फिर भी वे मिथ्यावाचन से अपने को रोक नहीं पाते हैं। एक बात और कि राजनेताओ में तो ऐसा लगता है कि मिथ्यावाचन की प्रतियोगिता चलने लगती है। उन्हें लगता है कि यदि वे इस वक्त मिथ्यावाचन नहीं करेंगे तो उनका काम बिगड़ जाएगा। कार्य करने की जगह अपने सहकर्मी को नीचा दिखाने के लिए मिथ्यावाचन एक सटीक और कारगर अस्त्र है। इस मिथ्यावाचन में कितने लोग तबाह हो गए हैं। हमने देखा है कि बरसात के मौसम में फिसल कर किसी के गिरने से दूसरों को ख़ुशी मिलती है। बाद में लोग उस गिरे हुए व्यक्ति को उठाने के लिए जाते हैं। उसी प्रकार प्रतिष्ठान, कार्यालयों आदि में भी उठाने – गिराने की प्रतियोगिता चलते रहती है। किसी की उन्नति होती है तो किसी की अवनति होती है। आज मित्रता की आड़ लेकर शत्रुता बरतने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इसे चतुरता, कुशलता समझा जाता है और इस प्रयास में सफल व्यक्ति आत्म-श्लाघा भी बहुत करते हैं।
आत्म-श्लाघा के चक्कर में साथी को विश्वास के जाल में फँसाकर उसकी बेखबरी का- भोलेपन का अनुचित लाभ उठा लेना यही आज तथाकथित चतुर लोगों की नीति बनती जा रही है। लेकिन इस प्रतियोगिता में मिथ्यावाचन की भूमिका काफी सक्रिय हो जाती है। इसी को लोग संशोधित रूप में राजनीति भी कहने लगते हैं। मगर राजनीति एक अलग विषय है। भय के कारण मिथ्यावाचन ही सक्रिय रहता है। समाज में कितनी बार देखा है कि अपराध करके अपराधी भाग जाता है लेकिन भय या खौफ से किसी में इतनी निडरता नहीं होती है कि मिथ्यावाचन करने वाले को रोक सके या कुछ कहने की हिम्मत हो। भय का सामना करने के दो रास्ते हैं – सब कुछ भुलाकर वहां से भाग जाएं या जो भी होगा उसका सामना करें और तरक्की करें। यानी पहले वाला उपाय में भय बरक़रार ही रहा। दूसरे वाले में भय की समाप्ति हो गयी है। कुछ मिथ्यावाचन लोक-कल्याण के लिए किया जाता है। धर्म की स्थापना के लिए मिथ्यावाचन का सहारा लिया जाता है। महाभारत युद्ध में इस प्रकार का मिथ्यावाचन किया गया है –
गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए गुरुपुत्र अश्वत्थामा के मृत्यु की गलत खबर युद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र में फैलाई गयी। जिससे कि गुरु शोक में डूब गए और शिष्य अर्जुन ने गुरु का वध कर दिया। ध्यान रहे इस कार्य में स्वयं भगवान शामिल थे। नीति के जानकार कहते हैं कि इस प्रकार के मिथ्यावाचन से कोई पाप नहीं लगता है। यह अपराध की श्रेणी में ही नहीं आता है। अब यह मिथ्यावाचन का सौन्दर्य देखने लायक है। तृष्णाओं की पूर्ति के लिए मिथ्यावाचन में पाप है लेकिन लोक-कल्याण के लिए मिथ्यावाचन में पाप नहीं है। तो क्या मिथ्यावाचन करते रहें – यह सही है? उत्तर कदापि सही नहीं है आएगा। ईश्वर के कार्यालय में सभी के कर्मो का लेखा-जोखा हमेशा पहुँचता रहता है। या परमात्मा के कार्यालय में सभी की जानकारी अद्यतन रहती है। हमें मिथ्यावाचन से बचना और बचाना चाहिए। गिरने –गिराने की खेल प्रतियोगिता नहीं चलनी चाहिए। सब कुछ छोड़कर यहीं जाना है। स्थायी इस संसार में कुछ भी नहीं है। सब नश्वर है। हमेशा बीज मन्त्र याद रखना है – सत्यमेव जयते। मुमकिन है कि सत्यमेव जयते में समय लगे लेकिन होगा अवश्य।
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