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मेरी बेटी जो कि कक्षा पहली में पढ़ती है इधर विद्यालय जाने में काफी रोती-धोती थी। विद्यालय जाने के नाम से ही उसे बुखार आने लगता है। शुरूआती दौर में वह ख़ुशी – ख़ुशी विद्यालय जाने के लिए तैयार होती थी। विद्यालय जाना –आना उसे अच्छा लगता था। अचानक यह परिवर्तन क्यों ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कहीं उसका ध्यान पढाई पर से हट तो नहीं रहा है या कुछ और बात हो गयी? मेरी बेटी को विद्यालय की पढाई इतनी तकलीफदेह क्यों लगने लगी ? मुझे अपना बचपन याद आने लगा। जिन दिनों मैं स्कूल में था तो स्कूल जाने से बचने के लिए मैं हर संभव कोशिश करता था। तब मैंने सोचा क्यों न उन तरीकों पर विचार किया जाए जिससे पढाई सुखद हो। किसी नई चीज को सीखना अपने आप में एक सुखद अहसास होता है।
सबसे पहले विद्यालय में खुशनुमा माहौल बनाना पड़ेगा। इसके लिए छोटो से पहले बड़ों को शिक्षित करना पड़ेगा। खुशनुमा माहौल में बच्चे जल्दी से कुछ सीख सकते हैं। यदि बच्चों में उत्तेजना, चिड़चिड़ाहट, चिंता, बैचेनी या गुस्सा नहीं हैं, तो वे सहज रूप से खुश रहते हैं।
बच्चों का खुशहाल अस्तित्व, उनको बोध की उच्च क्षमता और कामकाज के लिए अधिक सक्षम बनाता है। जब तक वे खुशमिजाज नहीं होंगे, तब तक हम उन्हें अध्ययन के लिए प्रेरित नहीं कर सकते। अभी हम लक्ष्य-केन्द्रित हो गए हैं। अधिक से अधिक अंक लाना तथा उसके लिए प्रेरित करना ही माता-पिता तथा शिक्षकों का लक्ष्य हो गया है। जीवन का अंतिम सत्य भूल गए है। अंतिम सत्य तो मृत्यु ही है – तो क्या जीवन के आरम्भ से ही बच्चों में मृत्यु का भय दिखाना शुरू कर दें और बच्चों को गौतम बुद्ध की तरह पलायनवादी बना दें। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि भगवान बुद्ध ने कुछ गलत किया। ये कहने की मेरी हिम्मत भी नहीं है। संसार को उन्होंने महान शिक्षा धर्म के रूप में दी। हमारे दूसरे शिक्षक लक्ष्य – केन्द्रित व्यवस्था को सही बताने के लिए महाभारत के समय का उदाहारण देते हैं । जब आचार्य द्रोण ने केवल अर्जुन को ही चिड़िया का आंख देखने के लिए सफल घोषित किया। अन्य शिष्य असफल घोषित कर दिए गए। तब आज के समय में शिक्षा किस प्रकार दी जाए – यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभर कर सामने आता है ? इसका उत्तर हम इस प्रकार दे सकते हैं – विद्यार्थियों व शिक्षकों के बीच खास तरह का एकाकार हुए बिना शिक्षा संभव ही नहीं है। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में मौलिकता को रखना होगा जो हमारे हिसाब और जरूरतों के मुताबिक हो, क्योंकि हजारों सालों से यह धरती जिज्ञासुओं व साधकों की रही है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षा दे कौन रहा है। शिक्षक का विकास होना बेहद महत्वपूर्ण है। इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें शिक्षण को लेकर किसी तरह की तरकीब या युक्तियां सीखने की जरूरत है। कोई भी शिक्षक एक खिला हुआ इंसान होना चाहिए, साथ ही वह अपेक्षाकृत अधिक खुशमिजाज, प्रेम करने वाला, करुणामय और चेतन भी होना चाहिए।
यहां तक कि भौतिक स्तर पर भी शिक्षकों को लचीला होना चाहिए। शिक्षक का बाहरी व्यक्तित्व निश्चित तौर पर बच्चों की नजरों में एक अलग असर पैदा करता है। अगर हम लोग सही वक्त पर सही चीजें नहीं करेंगे तो हो सकता है कि आने वाले समय में हम इंसान नहीं, बल्कि इंसान के रूप में जानवर तैयार करें। हालांकि हमने आज ही उनमें से कई जानवरों को दुनिया में पैदा कर दिया है। यही वजह है कि आज शिक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। यदि आतंकवाद को हम देखें तो पायेंगे कि उनको बनानेवाले भी कोई न कोई शिक्षक ही हैं। हाँ ये हम कह सकते हैं कि वे गुरु बृहस्पति न होकर गुरु शुक्राचार्य हैं। शुक्राचार्य से हमारा तात्पर्य आतंकी के गुरु से है। गुरु के ऊपर ही बच्चों का विकास निर्भर करता है। अभी तक हम लोग सिर्फ बच्चों को शिक्षित करने के बारे में सोचते रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण चीज है कि शिक्षकों को लगातार विकसित होना चाहिए और निखरते रहना चाहिए।
हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी दरिद्र है, यह और भी जरूरी हो जाता है कि स्वास्थ्य, सबके कल्याण व मानसिक दक्षता के लिए योग की मदद ली जाए। अपने शरीर और मन को अच्छी तरह से समझना और यह जानना कि कैसे उनका सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल किया जाए। बच्चों में उत्साह और जोश कुछ ऐसा होता है कि शिक्षक को उन्हें संभालने के लिए दस लोगों की ऊर्जा की जरूरत होती है। खासकर एक शिक्षक के तौर पर जब हमें सौ बच्चे संभालने हों तो हमको सुपर ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके लिए शिक्षक को योग की ही जरूरत है। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में एक वादा सभी शिक्षक को करना चाहिए कि वह जो भी करेंगे, उसमें वह असत्य से सत्य की ओर बढ़ेंगे – जो चीज़ काम नहीं करती, उसे छोड़कर उस चीज़ को अपनाएंगे, जो काम करती है। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में, क्योंकि आने वाले समय में इस दुनिया में जीवन कैसे होगा, इसका निर्धारण शिक्षा प्रणाली से ही होगा। हर विद्यार्थी की प्रतिभा, पृष्ठभूमि और जिन हालातों में उसने समय बिताया है, ये चीजें भी शिक्षा में प्रभाव डालती है, दुर्भाग्यवश शिक्षा के क्षेत्र में इन चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके पीछे सरकारी नीतियाँ रही होंगी। लेकिन जो भी हो वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यदि गुणात्मक सुधार लाना है तो उपरोक्त वर्णित बातों पर ध्यान देना ही होगा।
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