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शिवरात्रि फाल्गुन महीने की अमावस्या को मनाई जाती है, जो कि अंग्रेजी कैलेन्डर के हिसाब से फरबरी – मार्च में आता है । शिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है क्योंकि इसमें हमलोग सब कुछ का त्याग करने वाले भगवान् शिव की आराधना करते हैं। इसदिन लोग व्रत रखते है और सारी रात मन्दिरों मे भगवान शिव का भजन होता है। सुबह भगवान शिव के भक्त नहा धोकर शिबलिंग पर जल चढ़ाने जाते हैं। औरतो के लिये विशेष रुप से शुभ माना जाता है। क्योकि एक कथा है कि पार्वती ने तपस्या की और प्रार्थना की कि इस अन्धेरी रात में मेरे पर कोई मुसीवत न आये। हे भगवान उसके सारे दुख दूर हो जाये। तब से महाशिवरात्रि के उत्सव पर औरतें अपने पति और पुत्र का शुभ मांगती हैं। भगवान से प्रार्थना करती है क्वारी लडकियाँ भगवान शिव का पूजन करती हैं कि उन्हें अच्छा पति मिले।
सुबह होने पर लोग गंगा में या खजुराहो में शिवसागर तालाव में स्नान करना पुन्य समझते हैं। भक्त लोग सूर्य,विष्णु और शिव की पूजा करते हैं , शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाते है और ‘ॐ नमःशिवाय’ , ‘जय शंकर जी’ , ‘जय भोले नाथ’ , ‘बोलबम’ आदि की जय बोलते है। मन्दिर में घंटियों की आवाज गूंज उठती है।
किसी भी प्रकार का कार्य हो भगवान् शंकर के द्वारा वह कार्य मानवता की रक्षा के लिए किया जाता है. एक बार राजा भगीरथ अपना राज्य छोडकर ब्रह्मा के पास गये और प्रार्थना की कि हमारे पूर्बजों को उनके पापों से मुक्त करें और उन्हें स्वर्ग में भेज स्थान दें। वह गंगा को पृथ्वी पर भेजें जो उनके पूर्वजो को इस बन्धन से छुडा सकती है और सब पाप धो सकती है। तब ब्रह्मा ने उसकी इच्छा पूरी की और कहा कि आप शिव को प्रार्थना करे वह ही गंगा का भार उठा सकते है कहते है कि गंगा शिव की जटाओ पर उतरी उसके बाद पृथ्वी पर आई और यह भी कहा गया है कि शिव की जटाओं के बाद थोडी सी बौछारें आई इसलिये वरुण को भी पवित्रता का रुप माना जाता है जो कि प्राणी का जीवन-आधार है। लिगं को जल से स्बान कराया जाता है जिसको एक धार्मिक रुप दे दिया गया है। लिंग को दूध ,जल और शहद से भी नहलाते है उसके बाद उस पर चन्दन की लकडी के बूरे का पेस्ट बनाकर उस का टीका लिंग पर लगाया जाता है फूल,फल ,पान के पत्त्ते चढाये जाते है और धूप दिया जलाया जाता है। शिव पुराण की कथा में इन छः वस्तुओं का ढ़ंग से महत्व बताया गया हैः
१ लोग बेलपत्र से जल लिंग पर छिडकते है उसका तात्पर्य यह है कि शिव की क्रोध की अग्नि को शान्त करने के लिये ठन्डे जल व पत्ते से स्नान कराया जाता है जो कि आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है।
२ नहलाने के बाद लिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है।
३ फल, फूल चढ़ाना, धन्यबाद करना भगवान की कृपा और जीवनदान, भगवान शिव इस दुनिया के रवयिता है।उनकी रचना पर धन्यवाद करना।
४ धूप जलानाः सब अशुद्ध वायु,कीटाणु, गंदगी का नाश करने का प्रतीक है।हमारे सब संकट, कष्ट,दुःख दूर रहे, सब सुखी बसें।
५ दिया जलानाः हमें ज्ञान दें,हमें रोशनी दें,प्रकाश दें,विद्वान बनाये, शिक्षा दें ताकि हम सदा उन्नति के पथ पर बढते रहें।
६.पान का पत्ताः इसी से सन्तुष्ट हैं हमें जो दिया है हम उसी का धन्यवाद करते है।
जल चढाना, मस्तक झुकाना , लिंग पर धूप जलाना,मन्दिर की घण्टी बजाना यह सब अपनी आत्मा को सर्तक करना हैकि हम इस संसार के रचने वाले का अंग हैं।
शिव के नृत्य, ताण्डव नृत्य की मुद्राएँ भी खूब दर्शनीय होती हैं। नृत्य में झूमने के, लिये लोग ठंडाई जो एक पेय है और यह बादाम, भंग और दूध से बनती है, पीते है।
भगवान शिव औघड़दानी कहलाते हैं. औघड़दानी का अर्थ जल्द प्रसन्न हो जाना है. वे एक बार भस्मासुर पर प्रसन्न हो गए तथा भस्मासुर उन्हें ही भस्म करने चला. किसी प्रकार उन्होंने इस मुसीबत से छुटकारा पाया। मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने सर्वस्व समर्पण कर दिया । इसी कड़ी में पुराणों में बहुत सी कथाएँ मिलती हैं। एक कथा है कि समुद्र मंथन की। एक बार समुद्र से जहर निकला, सब देवी देवता डर गये कि अब दुनिया तबाह हो जायेगी। इस समस्या को लेकर सब देवी देवता शिव जी के पास गये, शिव ने वह जहर पी लिया और अपने गले तक रखा, निगला नही,शिव का गला नीला हो गया और उसे नीलकंठ का नाम दिया गया। शिव ने दुनिया को बचा लिया, शिवरात्रि इसलिये भी मनाई जाती है।
भगवान् शिव को प्रसन्न करने के कई स्तोत्र है – जैसे शिवतांडव स्तोत्र , शिव महिमा स्तोत्र, शिव नाम स्तोत्र आदि. इसके अलावे शिव के सहस्त्र नाम भी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग भी काफी प्रसिद्ध है – कहा जाता है कि भगवान् शिव वहां साक्षात् विराजते है। ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के मुताबिक- ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग कहा गया है। भगवान् शिव के रहने की जगह जंगलो में, पहाड़ो आदि में ही प्राय: होता है। पुराणों में और भी कथायें मिलती है जो कि शिव की महिमा का वर्णन करती है परन्तु सारांश यह है कि शिवरात्रि भारत में सब जगह फाल्गुन के महीने में मनाई जाती है, हर जगह हरियाली छा जाती है, सर्दी का मौसम समाप्त होता है। धरती फिर से फूलों में समाने लगती है। ऐसा लगता है कि पृथ्वी में फिर से जान आ गई है। सारे भारत में शिवलिंग की पूजा होती है जो कि रचना की प्रतीक है। विश्वनाथ मन्दिर, जो काशी में है, में शिवलिंग के “ज्ञान का स्तम्भ” दिखाया गया है। शिव को बुद्धिमता , प्रकाश, रोशनी का प्रतीक माना गया है। वह दुनिया का रचयिता है। वह अज्ञानता को दूर कर के फिर से इन्सान में एक नई लहर सी जाग जाती है आगे बढ़नें की, यह त्योहार एक नई उमंग लेकर मनुष्य को प्रोत्साहित करते रहते है। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी में नयी चेतना और उमंग से भर जाते हैं ।
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