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हमारे एक मित्र ने एक घटना सुनाई।
मित्र मुर्गा खरीदने के लिए बाजार गया। वहाँ व्यापारी सतत मुर्गा को काटने में लगा था। पिंजरे से मुर्गे को निकालकर बहुत ही बेरहमी से काटकर अपना व्यवसाय तथा मुनाफा बढ़ा रहा था। उसी पिंजरे में एक मोटा-ताजा मुर्गा था जो कि बाकी मुर्गे को तंग कर रहा था। सभी मुर्गे की पिटाई करता था। वह मोटा मुर्गा इस बात से अंजान था कि उसकी भी बारी कभी भी आ सकती है। वह इस बात को जान कर भी अंजान बना हुआ था।
हमारी भी स्थिति कमोबेश उसी मोटे – ताजे मुर्गे जैसी है। कभी भी हमारा क्रम काल के पास आ सकता है। इसलिए अभी भी वक्त है कि अपने काम मे लगे रहें।
कबीर के दोहे आज के लिए प्रासंगिक है:
आए एक ही देश से, उतरे एक ही घाट।
हवा लगी जू संसार की, हो गये बारह बाट।।
सभी एक जगह से आए, एक ही जगह आए। जैसे जैसे और जैसी जैसी दुनिया की हवा लगी, हर एक ने अपना रास्ता किया।
विवेकानंद केंद्र की उपाध्यक्ष माननीया निवेदिता दीदी भी कहती हैं कि जो भी करना है – उसे सर्वोत्तम तरीके से करना है। समय नजदीक आ रहा है। मुर्गे की तरह हमारी बारी भी कभी भी आ सकती है।
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