नवरात्रि साल में चार बार आती है। दो बार प्रकट एवं दो बार गुप्त. प्रकट नवरात्रि चैत्र एवं आश्विन माह में तथा गुप्त नवरात्रि आषाढ़ व माघ मास में आती है। इस बार चैत्र नवरात्रि या वासंती नवरात्रि ०६ अप्रेल से शुरू हो रही है।
हमारी संस्कृति में नारी की पूजा शक्ति के रूप में होती है। मां की आराधना शक्ति के रूप में की जाती है।चैत्र नवरात्रि के लिए घटस्थापना या कलश स्थापना चैत्र प्रतिपदा को होती है जो कि हिन्दू कैलेन्डर का पहला दिन होता है। अत: भक्त लोग साल से प्रथम दिन से अगले नौ दिनों तक माता की पूजा कर वर्ष का शुभारम्भ करते हैं। भगवान् राम का जन्मदिन चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन पड़ता है और इस कारण से चैत्र नवरात्रि को श्रीराम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान् श्री राम द्वारा लंका विजय के लिए माता दुर्गा की आराधना करने से हुई। इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों नवरात्रि का सम्बन्ध शक्ति के साथ – साथ भगवान् श्री राम से भी है। इसका और भी महत्त्व है जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है:-
हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है. चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के पीछे प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं अध्यात्मिक आदि अनेक कारण है।.
प्राकृतिक: चैत्र मास से मौसम परिवर्तन होता है। चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है।मौसम एकदम आनंददायक होता है अथवा सुहावना होता है। पेड़ से पत्ते झड़ने लगते है तथा नए पत्ते आने लगते है। इस समय कार्य करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो नौ दिनों तक माता की आराधना करने से भक्तों को प्राप्त होती है।
ऐतिहासिक: इसीदिन भगवान श्रीराम ने बाली वध किया था। शक ने हूणों को हराया था। इसी दिन से हिन्दू कैलेन्डर की शुरुआत होती है। महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी। उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् का प्रारम्भ भी इसी तिथि को किया गया था।
आध्यात्मिक :कहा जाता है कि चैत्र प्रतिपदा के दिन ही भगवान् ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। शारदीय नवरात्र वैभव और भोग प्रदान देने वाले है। गुप्त नवरात्र तंत्र सिद्धि के लिए विशेष है जबकि चैत्र नवरात्र आत्मशुद्धि और मुक्ति के लिए। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
ज्योतिष: ज्योतिषशास्त्र में चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।
आर्थिक : कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी चैत्र मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि फसल तैयार होकर घरों में आने लगती है। अत: इस अवसर पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।
वैज्ञानिक : ऋतु बदलने के लिए समय रोग जिन्हें आसुरी शक्ति कहते हैं, उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है जिसमें कई तरह की जड़ी, बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रखकर नवरात्रा में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है।
शारीरिक : नवरात्रि के समय व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढि़या हैं। इसका कारण यह है कि चारों नवरात्रि ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में बदलाव होता है जिससे शारीरिक और मानसिक बल की कमी आती है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किया जाता है। ऋतु संधि बेला में व्रत -उपवास से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। व्रत -उपवास करने वाले को अपनी सेहत एवं स्थिति के अनुसार व्रत -उपवास रहना चहिये। रोगी को डाक्टर से सलाह लेकर उपवास रहना चाहिए।
अत: हमें चैत्र या वासंती नवरात्रि को पूरे भक्तिभाव तथा मनोयोग से मनाना चाहिए।.
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