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विकास की रफ्तार- भारतीय रेल

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हमारे देश में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच चली थी। तब रेल ने 34 किलोमीटर की दूरी तय की थी।  तब से लेकर आज तक भारतीय रेल ने सफलता के कई मुकाम देखे हैं। आज 16 अप्रैल 1919 है ।

किसी भी देश का विकास सुचारु व समन्वित परिवहन प्रणाली के ऊपर निर्भर करता है। वर्तमान समय में हमारे देश में यातायात के हर प्रकार के साधन मौजूद हैं – जल, थल , एवं वायु। हर क्षेत्र में क्रांति आ रही है। यदि पूर्वोत्तर के सन्दर्भ में देखें तो एक समय यहाँ आना – जाना एक दुरूह कार्य समझा जाता था लेकिन आज परिदृश्य बदल गया है। पूर्वोत्तर में भी क्रांतिकारी परिवर्तन यातायात के साधनों में हुआ है – खासकर रेल के क्षेत्र में। देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भारतीय रेल की महत्वपूर्ण भूमिका है । रेल भारत में यातायात का मुख्य साधन होने के साथ ही देश के जीवन का जरूरी हिस्सा बन चुकी है । देश को एक सूत्र में जोड़े रखने में भारतीय रेल की महत्वपूर्ण भूमिका है। ट्रेन के डब्बे में बैठने के बाद क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद आदि न जाने कितनी बुराईयों से जनता को मुक्ति मिल जाती है तथा राजनीति के ऊपर हमारी जनता को कितना ज्ञान है यह ट्रेन की यात्रा करने से ही पता चलता है। लोगों को देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक कम एवं किफायती दर पर भारतीय रेल लेकर जाती है। भारतीय रेल जहां अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखकर यात्री तथा मालगाड़ी काफी कम किराया लेती है, वहीं आपदा या विपत्तियों के समय में देश की नि:स्वार्थ भाव से सेवा भी करती है । विश्व की एकमात्र भारतीय रेलवे है जो कई रेल खंडों पर घाटा सहकर भी वहां यात्री और मालगाड़ी सेवा परिचालित करती है ।

महाराष्ट्र के लातूर में जब भीषण जल संकट उत्पन्न हुआ तब भारतीय रेल ने ‘जलदूत’ सेवा शुरू करके अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया। गुजरात का भूकंप हो या अन्य किसी प्रकार की आपदा – भारतीय रेल निस्वार्थ भाव से अपनी जिम्मेदारियो को पूरा करती है। वर्तमान में भारतीय रेल विश्व की सबसे बड़ी रेल प्रणाली है । इसके पास 64,000 किलोमीटर लंबा रेल मार्ग है। भारतीय रेल की 13,000 से अधिक रेलगाड़ियां रोजाना चार बार धरती से चांद तक जितनी दूरी तय करती हैं । रेलों के जरिए प्रतिदिन डेढ क़रोड़ से ज्यादा यात्री अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं जो कि आस्ट्रेलिया की जनसंख्या के बराबर है। वर्ष 1952 में छह जोनों के साथ जोनल सिस्टम शुरू होकर वर्तमान में 17 जोन हैं । रेलवे में 16 लाख से अधिक नियमित कर्मचारी और 2 लाख से अधिक आकस्मिक कर्मचारी कार्यरत हैं । 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाली वन्दे भारत एक्सप्रेस (वाराणसी – नयी दिल्ली ) देश की सबसे तेज रेल है ।

भारतीय रेलवे पर इन दिनों दो बड़ी परियोजनाएं चल रहीं हैं। इस परियोजनाओं से रेलवे का चेहरा तो बदलेगा ही, साथ ही विकास को भी एक चेहरा मिलेगा। इनमें से एक है हाई स्पीड रेल कॉरिडोर (बुलेट ट्रेन) और दूसरी परियोजना है डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी)। पहली परियोजना के तमाम हानि-लाभ गिनाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी परियोजना यानी डीएफसी के केवल लाभ ही लाभ हैं।

भारतीय रेलवे में अभी भी माल गाड़ियों के लिए समय सारिणी तो बनती है, लेकिन 90 प्रतिशत ट्रेनें तयशुदा वक्त पर नहीं चल पाती हैं। इन माल गाड़ियों को मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के बीच-बीच में चलाकर किसी तरह चलाया जाता है। मौजूदा स्थिति यह है कि मालगाड़ी 30-35 किमी प्रतिघंटे की औसत गति से चलती है। डीएफसी बनने के बाद 100 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से बिना रोक टोक मालगाड़ी गंतव्य स्थान तक पहुंच सकेगी। आज की परिस्थिति में जेएनपीटी से दादरी पहुंचने के लिए मालगाड़ी को 3 दिन लगते हैं, डीएफसी के बाद अधिकतम 24 घंटे में ट्रेनें पहुंच जाएंगी। डीएफसी बनने के साथ ही मुंबई से दिल्ली तक कुल 88 लेवल क्रॉसिंग बंद हो जाएंगी, जिसका लाभ मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को भी मिलेगा। लेवल क्रॉसिंग बंद होने से मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की टाइमिंग भी बढ़ेगी।

केंद्र सरकार भारतीय रेलवे का कायापलट करने के मिशन में लगी है। बीते वर्षों में रेल यात्रा को सुगम बनाने और रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। रेलवे में आज के समय में आधारभूत ढांचे के निर्माण को जितना काम हुआ  है, उतना कार्य पहले कभी नहीं हुआ। रेलवे ने ट्रैक का सौ फीसदी विद्युतीकरण करने का फैसला किया है। 2022 तक देश की सभी ब्रॉड गेज रेल लाइनों का विद्युतीकरण किया जाएगा।

रेलवे ने आधारभूत संरचना की मजबूती, यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी, स्टेशनों के आधुनिकीकरण, ऑनलाइन टिकटों की बिक्री, टिकट आरक्षण की प्रणाली में बदलाव समेत तमाम कदम उठाए गए हैं। रेलवे के सामने ट्रेनों की लेटलतीफी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। रेल मंत्रालय के मुताबिक इस समस्या से निजात दिलाने की कोशिश की जा रही है। इसबीच रेल मंत्रालय ने फैसला लिया है कि ट्रेन लेट होने पर यात्रियों को मुफ्त में खाना-पीना उपलब्ध कराया जाएगा। देश डिजिटलीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। रेलवे में आरक्षित टिकटों की ऑनलाइन बिक्री तो काफी पहले शुरू हो गई थी लेकिन अनारक्षित टिकटों के लिए आज भी स्टेशन पर रेलवे विंडो पर लंबी-लंबी लाइनें लगती हैं। यात्रियों को इसी परेशानी से निजात दिलाने के लिए मोदी सरकार ने एक मोबाइल एप लॉन्च किया है। इस एप के माध्यम से आसानी से अनारक्षित टिकट बुक किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस टिकट के प्रिंट की जरूरत नहीं है, टीटी को मोबाइल पर ही टिकट दिखाया जा सकता है। मोबाइल आधारित एप्लिकेशन ‘UTSONMOBILE’ को रेल सूचना प्रणाली केंद्र (सीआरआईएस) ने विकसित किया है।

डिजाइन में स्थानीय कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देते हुए रेलवे एस्केलेटर, लिफ्ट, नि:शुल्क वाई-फाई इत्‍यादि सहित आधुनिक सुविधाएं स्‍थापित करके स्टेशनों का रूप-रंग पूरी तरह बदलने समेत यात्री सुविधाओं को बेहतरीन कर रही है। अरुणाचल के तवांग तथा चारधाम की यात्रा भविष्य में रेल द्वारा होने की उम्मीद है।

सुरक्षा-सेवा में वृद्धि हो , इस पर भी ध्यान है। 139 सेवा शुरू की गयी है. महिलाओं, बुजुर्गों पर विशेष ध्यान है। लेकिन जो भी हो – रेल अपना ढांचा बदलने के लिए तैयार है। परन्तु भारत जैसे विशाल देश में सामान्य श्रेणी के डिब्बे में यात्रा करना एक कठिन कार्य है। रेलवे को इस पर भी ध्यान देना चाहिए। परिवहन व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव तो आ रहा है और आना भी चाहिए लेकिन भारत देश के जन सामान्य की अपेक्षा पर भारतीय रेल उतर सके इसका ध्यान अवश्य होना चाहिए। बहुत सारे कार्य अभी भी भारतीय रेल को करने हैं या सफ़र अभी बाकी है। आशा है कि आने वाले दिनों में भारतीय रेल की विकास यात्रा और आगे तेजी से बढ़ेगी।

 

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