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दृढ विश्वास होने से मनुष्य कुछ भी कर सकता है. विश्वास के कारण ही मीरा विष का प्याला पीने के लिए तैयार हो सकती है. उसे अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास है. मीरा ने अपना सर्वस्व अपने आराध्य को दे दिया है. मीरा के विश्वास में आराधना और उपासना दोनों है तथा एकनिष्ठ भक्ति है. श्रीहनुमानजी विश्वास के ऊपर ही समुद्र लांघने के लिए तैयार हुए हैं. हालाँकि उनको जामबंतजी ने उनके अंदर की छिपी शक्ति को याद दिलाया. मगर हनुमानजी को पूर्ण विश्वास श्रीराम पर था और वे एक बार में ही समुद्र लांघने गए. न केवल समुद्र लांघा बल्कि लंका दहन भी कर दिया. हनुमानजी के विश्वास में भक्ति है. श्रीराम को भी हनुमानजी के ऊपर विश्वास है. अंगद, नल, नील आदि श्रेष्ठ महारथियों के होते हुए भी मुद्रिका हनुमानजी को ही श्रीराम ने दी. संसार में बहुत ही सरल हृदय वाले लोग मिल जायेंगे. बहुत जल्दी द्रवित भी हो जाते हैं. तुरंत रोना-धोना भी शुरू कर देते हैं. लेकिन मैंने जो एक बात महसूस की कि ऐसे लोगों को भी अपनों के ऊपर पूर्ण विश्वास नहीं होता है. कुछ बताने पर भी उनको ‘अपनों’ के ऊपर विश्वास नहीं होता है. जो सलाह उन सरल हृदय वालों को ‘अपनों’ ने दी है उसी बात को फिर दूसरों से पूछने जाते हैं. विश्वास की कमी के कारण ही वे आगे नहीं बढ़ पाते हैं. विश्वास हो तो पूर्ण रुपेण हो अन्यथा न हो. दूसरा विचार मन में होने से फिर विश्वास में कमी होती है. माता सीता को भगवान श्रीराम के ऊपर पूर्ण विश्वास है इसीलिए लंका में दिन रात भगवान श्रीराम को ही याद करती रही. जीवन में सुख-दुःख तो आते रहता है लेकिन दुःख में विश्वास में कमी नहीं आनी चाहिए. उनकी परवाह दुनिया नहीं करती जिनका विश्वास समय के साथ बदल जाता है. दुनिया हमेशा उनकी परवाह करती है जिनका विश्वास हमेशा बना रहता है. वक्त बदलने के साथ भी बना रहता है. कर्ण-दुर्योघन को एक दूसरे के ऊपर पूर्ण विश्वास था. कर्ण की शक्ति दीन-दुखियों की सेवा थी. सुविधाओं से कर्ण दूर रहता था. यहाँ तक कि पांडवों से अंदर ही अंदर प्रेम करता था. युद्ध में छिप कर अर्जुन को छोड़ कर बाकी पांडवों को जीवन-दान भी कर्ण ने दिया. कर्ण को कितना प्रलोभन दिया गया. तोड़ने का प्रयास किया गया लेकिन कर्ण का विश्वास अपने मित्र दुर्योधन से कम न हुआ. विश्वास को तोड़ना मानवीय दुर्बलता का उदाहरण है. गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं :
बिनु विश्वास भगति नहीं, तेहि बिनु द्रवहिं न राम.
राम कृपा बिनु सपनेहुं, जिव न लह विश्राम..
यदि व्यक्ति का ईश्वर पर विश्वास ही नहीं है, या वह मानता है कि कोई कृपा करने वाला नहीं है तो उसके ऊपर ईश्वर कैसे कृपा करेंगे? जब कृपा ही नहीं होगी तो दु:ख रूपी संसार में उसे सुख-शांति नहीं प्राप्त होगा. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी कहते हैं कि अँधेरे में ही चिड़िया का चहचहाना विश्वास का ही तो प्रतीक है क्योंकि चिड़िया को मालूम है कि अँधेरा छंटने वाला है. सुबह जरुर होगी. दुःख में गुरुदेव विश्वास के साथ शक्ति मांगते हैं – दूसरे और किसी बात की चाहत नहीं रखते हैं. बंदरिया एक पेड़ से दूसरे पेड पर छलांग लगाते वक्त अपने बच्चे को पेट से चिपकाए रहती है. पकडती नहीं है. क्यों नहीं पकडती है? क्योंकि बंदरिया को अपने बच्चे के ऊपर विश्वास है कि बच्चा नहीं गिरेगा. बच्चे को भी अपने माँ के ऊपर विश्वास है कि माँ उसे नीचे नहीं गिराएगी. इतना ही नहीं बंदर समाज में विश्वास का यह आलम यह है कि यदि बच्चा नीचे गिर गया तो उस बच्चे को मार दिया जाएगा. वह समाज में रहने लायक नहीं रहता है. उसे दूसरा मौका भी नहीं दिया जाता है. कहने का भाव यह है कि विश्वास ख़त्म होने पर जानवरों में भी क्षमा का प्रावधान नहीं है. आज के समय में विश्वास तोड़ना भी एक रिवाज बन गया है. अभी हाल के दिनों में एक राजनीतिक दल का गठन जनता के विश्वास को ध्यान में रखकर किया गया कि एक नए प्रकार की राजनीति होगी. लेकिन जनता का विश्वास इस नये प्रकार की राजनीति देखकर निश्चित रूप से उठ गया होगा. परिवार किस प्रकार चलता है? परिवार का प्रत्येक सदस्य को विश्वास ही बांध कर रखता है और वही अटूट बंधन परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत करता है .जब तक परिवार में विश्वास रहता है – परिवार चलते रहता है. जब विश्वास कम होता है – परिवार टूट कर बिखर जाता है. इसीलिए परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होना चाहिए.
अंत में हमें ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास होना चाहिए. क्योंकि उन्ही के नाम से यह संसार चलता है. यदि उन परमपिता से हमारा विश्वास उठ जाएगा तो फिर जिन्दगी में कुछ नहीं बचेगा. अपने विश्वास को हमेशा कायम रखना चाहिए.
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