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श्रीरामनवमी

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हिंदू संस्कृति में रामनवमी बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करने और दान करने से काफी पुण्य की प्राप्ति होती है। रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था, इसीलिए इस दिन पूरे समय पवित्र मुहूर्त होता है। लिहाजा, इस दिन नए घर, दुकान या प्रतिष्ठान में प्रवेश करना काफी शुभ होता है।

राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें मर्यादा पुरूषोतम कहा जाता है।राम राज्य शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। भारत में राम संस्कृति पुरूष के तौर पर स्वीकारे जाते हैं। वाल्मिकी रामायण से लेकर तुलसीकृत रामचरित मानस और उसके बाद भी अलग-अलग तरह से राम का चरित्र चित्रण किया गया है। राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरूष के तौर पर स्थापित हैं। ये हमारी आस्था और परंपरा के प्रतीक हैं।

श्रीराम राजा दशरथ के प्राण थे। उनके बिना वे अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। मंत्रियो के परामर्श से वे उन्हें युवराज का पद देने वाले थे। इसी शुभ समाचार को वे अपनी रानियों को कहने वाले थे लेकिन नियति की गति काफी विचित्र है। यहाँ कैकेयी ने कोपभवन जाकर श्रीराम के लिए १४ वर्षो का वनवास मांग लिया। इस जगह उनकी सहनशीलता तथा धैर्य की परीक्षा होती है। आज के समय में तो ये संभव ही नहीं था और यदि कोई पिता इस प्रकार के आदेश को जारी भी कर देता तो उस पिता को कैदखाने में डाल दिया जाता।

श्रीराम की दयालुता की चर्चा भी काफी होती है। गिद्ध जटायु और इंद्र के पुत्र जयंत पर इन्होने जो कृपा की है वह सर्वविदित है। सभी को साथ लेकर चलने में भी श्रीराम के जोड़ का कोई नहीं है – भीलनी शबरी हों, निषादराज गुह हों , वानरराज सुग्रीव हों- सभी के साथ इनका अच्छा तालमेल बैठता है तथा इन्होने एक आदर्श मित्र होने का परिचय दिया है।

प्रबंध कला में तो ये बेजोड़ हैं। रावण को हराने के लिए सेना चाहिए। यदि अयोध्या से ये सेना मंगाते हैं तो खर्च भी अधिक आएगा तथा उतनी सेना का आ पाना भी संभव नहीं है। तो इन्होने अपनी प्रबंध कुशलता का परिचय देते हुए वानरराज सुग्रीव से दोस्ती कर ली। अब किसी प्रकार की कोई समस्या ही नहीं रही। रहना, खाना इत्यादि सब निशुल्क. किसी प्रकार का व्यय नही.। मित्रता इतनी अटूट थी कि किसी प्रकार की शंका की गुंजाइश ही नहीं थी। रावण जैसे पराक्रमी को हराना है तो उसका भेद लेने के लिए शरणागत में आए विभीषण को अपना लिया। बिना विभीषण को अपनाए रावण पर विजय पाना आसान नहीं था । लक्ष्मण को जब शक्तिबाण लगा और वैद्य की आवश्यकता पड़ी तब विभीषण ने श्रीराम की सहायता की ।

पारिवारिक बातों में तो इनकी ख्याति ही है। राज्य लेने से इंकार कर दिया। लक्ष्मण जैसा भाई वन में कष्ट उठाने के लिए तैयार है। भरत भाई तो एक अलग मिसाल ही प्रस्तुत करते हैं। राज्य को वापस करने के लिए चित्रकूट तक चले गए। अयोध्या के राज्य को कौन संभालेगा ये एक विचारणीय प्रश्न हो गया था। लेकिन काफी बुद्धिमत्ता से इन्होने इस समस्या का भी हल खोज लिया।

श्रीराम की चर्चा करूँ और उनके सेवक श्रीहनुमान का जिक्र न आए तो चर्चा अधूरी रह जायेगी। श्री हनुमान हर वक्त, हर पल आदेश को पूरा करने के लिए तत्पर रहते हैं। एक क्षण भी आराम उनको पसंद नहीं है। ऐसा सेवक आज के समय में मिलना- एक कल्पना ही हो सकती है। संजीवनी बूटी लाने के लिए पूरा पर्वत ही उठा लिया। समुद्र लांघना हो या लंका दहन करना हो – किसी बात में वे पीछे नहीं है।

श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम आज के समय में प्रजातंत्र है। इसीलिए प्रजातंत्र को समझने के लिए पहले भगवान् श्रीराम को समझना होगा ।श्रीराम का अर्थ हम धर्म, राष्ट्रीयता तथा पराक्रम समझ सकते हैं। उनके लिए अयोध्या नगरी स्वर्ण नगरी लंका से बेहतर थी या स्वर्ग से भी सुंदर थी। धर्म, राष्ट्रीयता तथा पराक्रम के सामंजस्य को ही हम श्रीराम कह सकते हैं। यदि एकदम ही भगवान श्रीराम को नहीं समझ सके तब गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस का पाठ जरुरी है। यह एक महान कृति है तथा हर व्यक्ति के घर में यह ग्रन्थ होना ही चाहिए।

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