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‘संघर्ष’ की महत्ता

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मुंशी प्रेमचंद अपनी एक कहानी में ‘संघर्ष’ के बारे में लिखते हैं – ‘संघर्ष’ ही जीवन का लक्षण है। यदि जीवन जीना है तो ‘संघर्ष’ करना ही पड़ेगा। प्रकृति में जितने भी प्राणी या जीव हैं – सभी संघर्षरत हैं। समाज में दीन और धर्म में ‘संघर्ष’ चलते रहता है। शरीर में महीने में आने वाली दो एकादशियों के कारण ‘संघर्ष’ होते रहता है। इस ‘संघर्ष’ से आत्मिक शांति मिलाती है। जिससे संघर्षो में भी सम रहने की योग्यता विकसित होती है। यह कलियुग ‘संघर्ष’ का युग है। बीज भी अंकुरित होकर जमीन से बाहर निकलने के लिए ‘संघर्ष’ करता है। अंडा से बच्चा बाहर आने के लिए ‘संघर्ष’ करता है। प्रधानमंत्री अपनी सत्ता को बचाने के लिए या राष्ट्र-निर्माण के लिए ‘संघर्ष’ कर रहे हैं। विरोधी दल वाले सत्ता पाने के लिए या जमीन बचाने के लिए ‘संघर्ष’ कर रहे हैं। व्यापारी वर्ग व्यापार बढ़ाने के लिए संघर्षरत है। शिक्षक वर्ग अपने छात्र को कैसे उच्चतम शिखर पर लेकर जाए – इसके लिए ‘संघर्ष’ कर रहा है। मनुष्य आतंकवाद से मनुष्यता को बचाने के लिए ‘संघर्ष’ कर रहा है। आतंकियों ने अभी हाल के दिनों में मानवता को नष्ट करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। कुछ पाने के लिए कड़ी मेहनत और प्रयास करना ही ‘संघर्ष’ है और उसके बाद जो प्राप्त होता है वह हर्ष है। मनुष्य को आनंद के अलावे और किसी बात की अपेक्षा नहीं रहती है। बालक बचपन में माँ-पिताजी के पग पर ‘संघर्ष’ करता है तो खिलकर बड़ा होता है। ऐसी अवस्था में बालक को अधिकार से अधिक कर्तव्यों की याद रहती है। बालक जब बड़ा होता है तो अपने लिए कुछ नहीं करके माँ-पिता को खुश करने के लिए ‘संघर्ष’ करता है। अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए ‘संघर्ष’ करता है। ‘संघर्ष’ की राह में तो कठिनाईयां तो आएँगी ही-जीवन का सच हमें बताएगी, कदम बढ़ाते रहने से सब कुछ सहते हुए एक दिन ये जिन्दगी खुशियों से सज जाएगी। ‘संघर्ष’ के समय अपने भीतर आत्मविश्वास को जगा कर रखना है –जिससे कि ‘संघर्ष’रत व्यक्ति निरंतर प्रेरित हो। यदि आत्मविश्वास सो गया तो ‘संघर्ष’ समाप्त हो जाएगा। ‘संघर्ष’ शब्द का असली अर्थ एक शहीद का पिता और सीमा पर लड़ने वाला सैनिक बता सकता है – क्योंकि दोनों अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर ‘संघर्ष’ करते रहते हैं। आज नहीं तो कल संघर्षो का फल फलता है। अनमोल अनुभूति होती है।

यदि महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है तो खुशियाँ कम मिलेंगी, नींद कम आएगी लेकिन ‘संघर्ष’ अधिक करने होंगे। लेकिन बाद में खुशियाँ अपार मिलेंगी। जीवन में कुछ बनने के लिए कड़ा ‘संघर्ष’ करना ही पड़ता है – अपने आप से – परिवार से – समाज से तभी मनुष्य कुछ हासिल कर पाता है। ‘संघर्ष’ परछाई है जिसके साथ मनुष्य जीवन बिताता है। ‘संघर्ष’ है तो विजय है। प्रयास तो सभी करते हैं लेकिन सफल वही होता है जिसके ज्ञान और परिश्रम में ‘संघर्ष’ होता है। ‘संघर्ष’ में गति है तो प्रगति है। यदि ‘संघर्ष’ में हार नहीं माना तो जीबन मस्त हो जाएगा। चिड़िया और पशु भी अपने जीवन में ‘संघर्ष’ करते हुए दिखाई दे जायेंगे। यदि पुराणों को देखें तो पाएंगे कि देवता और असुरों में भी पग – पग पर ‘संघर्ष’ हुआ। तिकड़म हुए और बाद में देवता को हर्ष की प्राप्ति हुई। मुकद्दर का सिकंदर वही कहलाता है जो जीवन में ‘संघर्ष’ करता है। ‘संघर्ष’ ही एक ऐसा हथियार है जो मनुष्य को उसकी पहचान दिलाता है। इतिहास गवाह है जिसे आसानी से जीत मिली – उसका नाम लेने वाला कोई नहीं रहा। रामायण तथा महाभारत इस ‘संघर्ष’ की गाथा गाने के लिए सटीक उदाहरण हैं। जीवन का अर्थ ही ‘संघर्ष’ है। जीत या हार तो ईश्वर के हाथ में है – इसीलिए अपने ‘संघर्ष’ के बदले में कुछ पारितोषिक की उम्मीद रखना भी गलत है क्योंकि ‘संघर्ष’ करने के लिए जो शक्ति ईश्वर ने प्रदान की – वह भी एक पारितोषिक है।  इसीलिए जिसने ‘संघर्ष’ का स्वाद नहीं चखा उसकी जिन्दगी बढ़ी बेस्वाद हो जाती है। जीवन का ‘संघर्ष’ हमें विजय पताका फहराने की ओर ले जाता है। बिना ‘संघर्ष’ के जो मिलता है वह दूसरे शब्दों में कहें तो भीख के समान होता है। ‘स’ से ‘संघर्ष’ तथा ‘स’ से ‘सफलता’ है। शुभ प्रभात सन्देश में एक बार पढ़ा – ‘संघर्ष’ करते हुए नहीं घबराना चाहिए – क्योंकि उस वक्त इन्सान अकेला ही होता है। सफलता के बाद तो सारी दुनिया साथ देती है। बचपन बीता लड़कपन में , न बीत जाए यूँ ही जवानी।

कर ऐसा कुछ कि इतिहास बताए तेरे ‘संघर्ष’ की कहानी।।

पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी के शब्दों में :

“ सत्य का ‘संघर्ष’ सत्ता से

न्याय लड़ता निरंकुशता से

अँधेरे ने दी चुनौती है

किरण अंतिम अस्त होती है। “

महाराणा प्रताप ने जो ‘संघर्ष’ किया वह इन पंक्तियों में है :

देता संघर्षो को न्योता मानवता के खातिर जग में।

ठोकर से करता दूर सदा जो भी बड़ा आती मग में।

जो दान लहू का देकर भी अपना कर्तव्य निभाता है।।

वही सूरमा इस जग में दुनिया में पूजा जाता।।

‘संघर्ष’ एक ऐसा केंद्र है जहाँ हताशा का व्यास कितना भी बढे लेकिन संभावनाओं की परिधि कम नहीं होती। ‘संघर्ष’ से तात्पर्य दो या दो से अधिक समूहों के बीच मतभेद, प्रतिरोध , विरोध आदि से है। ‘संघर्ष’ अपने स्वप्नों को प्राप्त करने का भी हो सकता है। यह ‘संघर्ष’ परिस्थितियों से होता है। जिसमे व्यक्ति स्वयं को तपाता है। अंत में हम कह सकते हैं कि ‘संघर्ष’ शब्द में छुपा है – मेहनत , ईमानदारी और शालीनता।

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