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प्रायः शिक्षकों के लिए हमेशा सहयोगी शिक्षकों के अनुपस्थित रहने पर उनके कक्षा में जाना पसंद नहीं आता है। शिक्षक यह भूल जाते हैं कि अनुपस्थित रहना एक पारिवारिक मज़बूरी है। इसीलिए छुट्टी लेनी पड़ती है। जान – बूझकर कोई भी शिक्षक अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहता है। लेकिन किसी के बदले में यदि कक्षा में जाना पड़े तो समस्या गहन हो जाती है। शिक्षक जाते तो हैं लेकिन अनमने ढंग से। सारे शिक्षक ऐसा करते हैं – ऐसी बात नहीं है। लेकिन अधिकांश शिक्षक को यदि एक भी अतिरिक्त कक्षा का दायित्व दिया जाता है तो चेहरा देखने लायक हो जाता है। शिक्षक – कक्ष में यह विषय चर्चा का बन जाता है कि किस शिक्षक को कितने अतिरिक्त कक्षा का भार इस सप्ताह या माह में मिला।
हमेशा की तरह आज भी विद्यालय गया. सुबह की प्रार्थना – सभा समाप्त होने के बाद दायित्व पर्ची में देखा कि एक अतिरिक्त कक्षा का दायित्व मुझे मिला था। नियमित कक्षा के लिए पाठ – योजना तैयार थी। लेकिन अतिरिक्त कक्षा के लिए पाठ – योजना तैयार नहीं थी। मन में आया की कक्षा में जाने के बाद सोच लेंगे। सिर को झटका दिया और अपने नियमित कक्षा की तैयारी में लग गया।
अतिरिक्त कक्षा में जाने के बाद बच्चों से प्रश्न किया की क्या पढ़ना है ? हिंदी पढ़ें या समाज-विज्ञान या आप लोग अपने से पढेंगे? बच्चों ने कहा कि गुरुजी आप ही निर्णय करें कि क्या पढ़ना है? अब तो समस्या एकदम गहन हो गयी। मन में सोचा था कि छात्र बोल देंगे कि अपने से पढेंगे और मेरा काम हो जाएगा। लेकिन यहाँ तो उत्तरदायित्व वाली बात थी। गेंद अब मेरे पाले में बच्चों ने डाल दी थी। यदि बच्चे विद्यालय में आए हैं तो अध्ययन कार्य अवश्य होना चाहिए ।तो अध्ययन कार्य अब होगा – यह निश्चित हो गया।
तो चलो – बच्चों – अभ्यास – पुस्तिका निकालिए और ज्ञानेन्द्रियों को कैसे साफ़ – सुथरा रख सकते हैं – १० मिनट में लिखिए। बच्चों ने आदेश का पालन किया और लिखने में लग गए। करीब १० मिनट के पश्चात बच्चे अपनी – अपनी उत्तर – पुस्तिका के साथ जाँच करवाने के लिए आने लगे ।करीब – करीब सभी बच्चों का उत्तर एक जैसा ही था। थोडा बहुत का ही अंतर था। लेकिन एक बच्चे ने कुछ अलग से लिखा था – जिसका जिक्र करना यहाँ मैं आवश्यक समझता हूँ।
उस बच्चे ने जो लिखा था – वह इस प्रकार है : –
जीभ : सही प्रकार का भोजन जीभ करे – जिससे की किसी का नुकसान न हो – खासकर शरीर का। जीभ का
शरीर में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है – खासकर सम्बन्ध बनाने में।
आँख : केवल अच्छी बातों को ही देखे । हिंसा वाली दृश्यों से आँखों को दूर ही रखा जाए।
कान : केवल अच्छी बातें ही सुने । किसी की बुराई, निंदा या निरर्थक बातों से दूर ही रखें ।
नाक : केवल अच्छे से श्वास ले। गंदगी से दूर रहे। गंदगी वाले वातावरण में रहने से आलस्य आता है।
त्वचा : किसी भी प्रकार के संक्रमण से दूर रखें।
यह उत्तर देख कर मैं आश्चर्यचकित था. एक बच्चे की क्षमता अपार है। बच्चे ही बड़े बनकर न्यूटन आदि जैसे वैज्ञानिक बनते है। बच्चे एकदम भोले होते हैं। कभी – कभी हम लोगों को भी शिक्षा दे देते हैं। मैंने भी ऐसा नहीं सोचा था ।
हमारे चारो तरफ क्या हो रहा है – यह देखने की बात है ? ज्ञानेन्द्रियों को गन्दा रखने का कितना प्रयास बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा किया जा रहा है – यह जग जाहिर है। श्रृंगार – प्रसाधन की वस्तुओं से बाजार भरा – पड़ा है। क्या हम उन सामानों से अपने ज्ञानेन्द्रियों को स्वच्छ रख सकते हैं – यह विचारणीय प्रश्न है ?
अब बारी माँ-पिताजी की होती है। बच्चों को सही वातावरण देना हर माँ-पिता की जिम्मेदारी होनी चाहिए। परिवेश अधिक महत्वपूर्ण है। बच्चे हर कीमत पर अच्छी बातें ही लें – इसका ख्याल माँ-पिता या अभिभावक को रखना ही चाहिए।
जो भी हो – आज का यह अतिरिक्त कक्षा मेरे लिए ज्ञानवर्धक ही रहा। बच्चे की सोचने की क्षमता का पता चला।
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