- 42 Posts
- 0 Comment
स्वाध्याय क्यों जरुरी है – शिक्षक के लिए? शिक्षक का कार्य ज्ञान देना या ज्ञान का प्रचार – प्रसार करना होता है. यदि ज्ञान देना है तो ज्ञानी होना पड़ेगा. ज्ञानी बनने के लिए अध्ययन करना होगा. अध्ययन अब या तो पढ़कर होगा या सुनकर होगा. प्राचीन काल में श्रुति का उपयोग अधिक होता था. एक विशेष वर्ग बना दिया गया था जो कि वेद, पुराण आदि धर्मग्रंथों को सुनकर मुखस्थ कर लेता था तथा आने वाली पीढ़ी को फिर सुनाकर कंठस्थ करा देता था. बाद में लिपि की आवश्यकता महसूस की गयी. ताम्र पत्र पर वेद आदि ग्रंथों को लिखा जाने लगा. इसके बाद मुद्रण की आवश्यकता महसूस की गयी. इस प्रकार विकास का क्रम आगे बढ़ा. लेकिन यह विकास का क्रम आगे बढ़ाने में किस कारक ने मह्त्त्वपूर्ण भूमिका निभाई या उत्प्रेरक का कार्य किया? निश्चित रूप से इसमें स्वाध्याय का ही नाम आएगा. यदि मानव स्वभाव ज्ञान प्राप्ति की तरफ उत्तरोत्तर आगे नहीं बढ़ता तो आज जहाँ पर हम हैं वहां पर नहीं पहुँचते. अब प्रश्न है कि शिक्षक समाज ही क्यों? अन्य कोई और समाज नहीं? इसका सीधा उत्तर है कि ज्ञान को फ़ैलाने का दायित्व तो शिक्षक समूह या वर्ग के ऊपर है. तो दूसरे समूह से इसकी अपेक्षा क्यों की जाए? तो शिक्षक समुदाय के लिए स्वाध्याय जरुरी है. अब स्वाध्याय के शाब्दिक अर्थ को देखा जाए – अपने से अध्ययन करना ही स्वाध्याय है. जब अपने से कोई अध्ययन करना है तो साथ में किसी की आवश्यकता नहीं है – ऐसा लोग कहते हैं. अपने से आज स्वाध्याय कर लिया – ऐसा यदि कोई कहता है तो निश्चित रूप से यह स्वाध्याय की असली परिभाषा नहीं हुई. तब स्वाध्याय में और क्या हो सकता है? स्वाध्याय में चिंतन, मनन तथा श्रवण इन बातों का भी समावेश होना चाहिए. अब यदि चिंतन, मनन तथा श्रवण करना है तो समूह की आवश्यकता पड़ेगी. इसके लिए एक स्वाध्याय समूह का निर्माण करना पड़ेगा. शिक्षक का दायित्व एक प्रगतिशील और जीवंत समाज का निर्माण करना है. जीवन जीने का सही तरीका सिखाने के लिए पहले अपने में सही तरीके का विकास करना पड़ेगा. आज का समाज भोग-विलास में मस्त है. दूसरे को देखने की संवेदना समाप्त हो गयी है. केवल अपने तक ही सोच रह गयी है. किस प्रकार अन्य को गिराया जाए इसी में ध्यान केन्द्रित है. मानव-समाज का उत्थान हो ? मानव – मानव से प्रेम करे, इसकी कल्पना करने के लिए अभी किसी के पास समय नहीं है. जीवन पशुतुल्य हो गया है. पशुतुल्य इसीलिए कहा क्योंकि पिता के संयोग से माँ के गर्भ में प्रजनन की प्रक्रिया तो पशु-पक्षियों में भी होती है. लेकिन जीवन को सही ढंग से जीना तो केवल मनुष्यों ने ही सीखा है. मनुष्य शरीर दिव्य प्रेरणाओं से संचालित होने लगे तो जीवन का उद्देश्य सफल हो जाएगा. स्वाध्याय का अर्थ अब काफी व्यापक हो गया. धर्मग्रंथो का अध्ययन समूह में करना तथा यह सुनिश्चित करना कि आज हमने क्या सीखा जिससे कि समाज का भला हो. हम क्या सोच रहे हैं? हम किस बात से डर रहे हैं? हम किस तरफ जा रहे है इत्यादि बातें भी हमारे स्वाध्याय का हिस्सा बने. बच्चों में आजकल नैतिक गुणों की कमी आ रही है. बच्चों में नैतिक गुणों का विकास हो – इसके लिए भी स्वाध्याय बच्चों के साथ बैठकर किया जा सकता है. अभी हाल के दिनों में एक विद्यालय में एक उच्चतर कक्षा में पढने वाले छात्र ने एक प्राथमिक कक्षा में पढने वाले छात्र की हत्या कर दी. कारण जानकार मन सिहर उठा – परीक्षा की तिथि बढ़ाने के लिए हत्या जैसा कठोर कदम छात्र ने उठा लिया. यह विकृति निश्चित रूप से हिंसक फिल्म या सामाजिक वातावरण के कारण उत्पन्न हुई होगी. विषय – वस्तु को छोड़कर यदि शिक्षक स्वाध्याय के माध्यम से बच्चों में नैतिक गुणों को भरने की कोशिस करते तो उपरोक्त वर्णित घटना को रोका जा सकता था. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि शिक्षक कोई काये नहीं करते हैं – मगर मेरा मानना है कि केवल पाठ्यक्रम को पढ़ा देने से शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते हैं. ध्यान रहे स्वाध्याय के लिए यदि हम समूह में बैठे हैं तो सभी के विचारों का हम स्वागत करें. स्वाध्याय वाद – विवाद प्रतियोगिता न बन जाए बल्कि जो सही विचार निकलता है उसे लिया जाए. सही की खोज ही वास्तव में स्वाध्याय है. जीवन निर्माण और जीवन-सुधार जैसी पुस्तकों को पढ़ना , उस पर मनन करना , उस पर चिंतन करना , उसी का श्रवण करना तथा उस पर अमल करना ही स्वाध्याय है. केवल तोता रटंत बन कर हम न रह जाएं. जो सीखें उसे दूसरों में फ़ैलाने का प्रयत्न करें तथा मानव निर्माण की तरफ एक कदम आगे बढाएं. ऐसा नहीं की हम स्वाध्याय समूह में बैठकर और सुनकर चले आएं , न वहां पर मुंह खोलें. बाहर आकर फिर वही पुराने तौर – तरीको से चलने लगे – तब तो यह स्वाध्याय नहीं हुआ. आजकल अनेक छोटे – छोटे विद्युत् घटकों से परिचालित सूक्ष्म यंत्र बाजार में उपलब्ध हैं उसकी मदद स्वाध्याय में अच्छी और मानवोपयोगी बातों के लिए ली जा सकती है. क्योंकि प्राय: ऐसा देखा गया है कि उन यंत्रो का ज्यादातर प्रयोग समाज को बिगाड़ने के लिए ही हो रहा है. अंत में हम कह सकते हैं कि स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
Read Comments