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समझ न बच्चू, हमको कच्चू, जिसपर चाक़ू धंस जाएगा,
बड़ी सख्त है आम की चमड़ी, गफलत में गच्चा खाएगा,
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अपने को तू गजराज समझ, मतवाला बन कर झूम रहा,
यह नहीं बपौती तेरी, क्यूं पग पटक-पटक कर झूम रहा,
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इतिहास देख, अच्छे-अच्छों को इसी दंभ ने मारा है,
रावण था बहुत शक्तिशाली, पर “धर्म-युद्ध” में हारा है,
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तेरे कुकर्म थे सदा जटिल, वाणी में विष क्यों लाता है ,
जनता की हाय गिरे जिसपर, वो अन्तकाल पछताता है,
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मुद्रा – पैसा,
बनने को एक भोग – विलासी, तू कृत्य कर रहा कैसा – कैसा,
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सुन हम मानव तू भी मानव, पर तुने मानव धर्म को त्यागा,
एक जनम ही मिला सभी को, ये क्या कर डाला हाय अभागा,
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तुम सब पापी को देख – देख, यमराज ने अपनी मूंछ ममोरी,
चित्रगुप्त हंस – हंस लिखता है, जितनी हरकत हुई छिछोरी,
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साम – दाम और दंड – भेद, माँ के उर में ही जान गया तू,
करता गया जघन्य अपराधें, हर सीमा को है लांघ गया तू,
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अब देख चिता सजी है तेरी, विकराल काल मुँह खोल खड़ा है,
तेरा फूँक डालने जीवन सारा , ये आम ही बन अंगार खड़ा है,
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अब नहीं है इच्छा ले तू शिक्षा, हमें रौद्र रूप दिखलाना होगा,
अब यही माँग सब माँग रहे, “तुझको विलुप्त हो जाना होगा”
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ANAND PRAVIN
(कच्चू – एक प्रकार की सब्जी, जिसे काफी जगह अरबी भी कहते हैं)
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