- 40 Posts
- 1401 Comments
जीतना, तो मूल है, मेरे लिए तो धुल है,
मैं चाहता हूँ जितना, पर सर नहीं झुकाऊँग,
ये वंदना मैं गा के, अपने आप को सुनाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (१)
.
मैं आदमी हूँ, सार्थक, भले कहो निरार्थक,
किसी की बात को, मैं अपने, दिल से ना लगाऊँगा,
प्राण मेरी वायु है, जो कुछ भी मेरी आयु है,
मैं इसमें, अपने आप को , समेट के दिखाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (२)
.
मुझे जो लगती है भली, वो करता सीना तान के,
ईमान मेरा पक्का है, बुरा करू ना जान के,
भलाइयों, को करने का, अब लक्ष्य मैं बनाऊँगा,
जो बीड़ा, मैं उठाऊँगा, हर हाल में निभाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (३)
.
मैं, एकलव्य हूँ नहीं, जो तीर पक्की मारता,
समाज की बुराइयों को, गीत में उतारता,
उतारने की धुन को अपना, ध्येय मैं बताऊँगा,
छोटा ही, पर मैं, अब कोई, संदेश दे के जाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (४)
.
मुझे पता है, आज भी, क्या हो रहा समाज में,
दबे हुए से तत्व के, दबी हुई आवाज़ में,
इन आवाज़ में, बुलंदियों के साज मैं मिलाऊँगा,
इस साज, के लिए ही तो, मैं धुन नयी बजाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (५)
.
आज देखो लोकतंत्र, किस कदर रुला रहा,
जो इसे चला रहा, वही इसे दबा रहा,
दबे हुए से तंत्र को, अब नया, मंत्र मैं सिखाऊँगा,
सुधारने को अब, नए नियम को मैं, बनाऊँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (६)
.
मैं खुद से ही, ये कह रहा हूँ, उर्जा नयी दिखा,
अधिकार तुझको, न मिले जो, उनकों अब तू छीन ला,
उमर यहीं है करने की, इस बात पे अर जाऊँगा,
हर बात पे जो घबराऊँगा, ख़ाक बड़ा बन पाउँगा,
कदम यदि बढ़ाऊँगा, तो पीछे फिर ना आऊँगा I (७)
ANAND PRAVIN
छोटी गलतियों के लिए क्षमा चाहूंगा
Read Comments